यात्रा पर जाने से पहले आपने लोगों को अक्सर शकुन और अपशकुन की बात कहने सुनी होगी. शकुनशास्त्र में शकुन और अपशकुन पर विस्तृत चर्चा है. यात्रा से जुड़े शकुन और अपशकुन के बारे में क्या कहता है शकुनशास्त्र.
शकुन का प्रारंभ शिवजी ने किया था. शिवजी जब अंधकासुर का वध करने चले तो मार्ग में उन्हें कुछ ऐसे संकेत दिखने लगे जिसे उन्होंने स्वयं के लिए शकुन की तरह लिया. उन्हें युद्ध के दौरान ऐसे बहुत से आभास हुए. बाद में शिवजी ने इसका ज्ञान कार्तिकेय जी को दिया. शिवजी द्वारा बताए इसी ज्ञान के आधार पर कार्तिकेय ने सबसे पहले शकुन और अपशकुन से संबंधित ज्ञान शिवगणों को दिया.
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इस पोस्ट में आप जानेंगे-
- यात्रा के समय किस संकेत को शकुन और किसे अपशकुन मानना चाहिए
- क्या अपशकुन को शकुन में बदला जा सकता है.
- अपशकुन का परिहार अर्थात अपशकुन दूर कैसे होता है, क्या करना चाहिए.
शकुनशास्त्र महाभारत काल में बहुत प्रचलित था. शकुन और अपशकुन का विचार करके ही निर्णय हुआ करते थे. इसके विविध साक्ष्य महाभारत काल में मिल भी जाते हैं. शुभकार्य या अतिमहत्वपूर्ण कार्य पर निकलने से पहले लोगों के मन में शकुन और अपशकुन को लेकर बड़े प्रश्न रहते हैं. ज्योतिष के विद्वान वाराहमिहिर कुछ ऐसे कार्य बताते हैं जिनके आरंभ करने से पहले शकुन और अपशकुन का विचार जरूर करना चाहिए.
- नष्ट वस्तु यानी कोई सामान बर्बाद हो गया उसके निरीक्षण के समय
- किसी व्यक्ति से मिलते समय
- युद्ध के समय
- किसी भी कार्य के आरंभ करने से पूर्व
- गृहप्रवेश के समय
- राजा के दर्शन के समय और
- यात्रा के समय
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वराहमिहिर ने कहा है कि इन प्रयोजनों के समय तो शकुन और अपशकुन का विचार अवश्य ही कर लेना चाहिए.
आमतौर पर सबसे ज्यादा शकुन और अपशकुन संबंधी प्रश्न लोगों के यात्रा के समय के होते हैं. इसलिए यात्रा से जुड़े प्रचलित शकुन और अपशकुन विचारों के बारे में जानेंगे. यात्रा के समय कौन सा लक्षण शकुन होता है और कौन सा अपशकुन. क्या अपशकुन को शकुन में बदला जा सकता है.
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