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ब्रह्माजी के मानसपुत्र मरीची और कर्दम ऋषि की पुत्री कला के पुत्र थे महर्षि कश्यप. दक्ष प्रजापति ने अपनी साठ कन्याओं में से 13 का विवाह कश्यप से किया. कश्यप की इन्हीं पत्नियों से देवता, असुर, पशु-पक्षी, यक्ष-गंधर्व, किन्नर-वनस्पति आदि पैदा हुए थे.
प्रजापति कश्यप एक शाम संध्या पूजा की तैयारी कर रहे थे. तभी काम के आवेश से उन्मत उनकी एक पत्नी दिति, संभोग की इच्छा से यज्ञशाला में पहुंच गईं.
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दिति ने कहा- आपकी पत्नी के रूप में मेरी अन्य बहनें मातृत्व का आनंद ले रही हैं. मुझे भी मातृत्व सुख प्रदान चाहिए. पति धर्म निभाते हुए आप मेरे साथ सहवास करें.
कश्यप ने कहा- मैं तुम्हारी इच्छा अवश्य पूर्ण करूंगा क्योंकि तुम मेरी पत्नी हो. पत्नी मोक्ष की संगिनी होती है किन्तु कुछ समय के लिए रुक जाओ. अभी मैं संध्यावंदन कर रहा हूं.
दिति दक्ष की पुत्री थीं. समस्त शास्त्रों में पारंगत लेकिन कामबाण से त्रस्त होने के कारण उन्होंने अपने ज्ञान का प्रयोग कुतर्क के लिए आरंभ किया.
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दिति ने कहा- विवाह के समय मेरे पिता को आपने वचन दिया था कि पत्नियों को प्रसन्न रखने के लिए ब्रह्मांड की जो भी वस्तु आपके सामर्थ्य में होगी उसे प्रदान कर संतुष्ट करेंगे. आप प्रजापति के वचन भंग का दोष क्यों लेते हैं?
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