संगति हमेशा अच्छी होनी चाहिए. अच्छी संगति में रहने से बुरे से बुरे कर्म करने वाले में भी सुधार की संभावना जीवित रहती है. संगति की यह कथा कुछ सीखने-सिखाने के उद्देश्य से दी जा रही है.
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संगति कीजिए साधु की हरे कोटि अपराध… अच्छी संगति से करोड़ों अपराध के नाश की संभावना रहती है. एक कथा आपको सुनाने जा रहा हूं. आशा है यह आपके मन को झकझोरेगी. संगति के महत्व को समझेंगे और संकल्प करेंगे अच्छी संगति बढ़ाने की, बुरी संगति मिटाने की. सावन से ज्यादा अच्छा अवसर सुंदर संगति के संकल्प का और क्या होगा.
अंग्रेजी में एक बहुत प्रसिद्ध कहावत है- “A man in known by the company he keeps.” इंसान की पहचान उसकी संगति से होती है. ये छोटी सी कहानी आप पढ़िए. संगति का असर क्या हो सकता है, इससे जीवन स्वर्ग भी बन सकता है और नर्क भी. संगति से नर्क में धंसते लोगों के किस्से तो आपने अपने आसपास खूब देखे होंगे. एक कथा जीवन में बदलाव की. प्रेरणा लीजिए.
एक चोर को कई दिनों तक चोरी करने का अवसर ही नहीं मिला. उसके खाने के लाले पड़ गए. मरता क्या न करता. मध्य रात्रि गांव के बाहर बनी एक साधु की कुटिया में ही घुस गया.
वह जानता था कि साधु बड़े त्यागी हैं. अपने पास कुछ संचय करते तो नहीं रखते फिर भी खाने पीने को तो कुछ मिल ही जायेगा. आज का गुजारा हो जाएगा फिर आगे की सोची जाएगी.
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चोर कुटिया में घुसा ही था कि संयोगवश साधु बाबा लघुशंका के निमित्त बाहर निकले. चोर से उनका सामना हो गया. साधु उसे देखकर पहचान गये क्योंकि पहले कई बार देखा था पर उन्हें यह नहीं पता था कि वह चोर है.
उन्हें आश्चर्य हुआ कि यह आधी रात को यहाँ क्यों आया! साधु ने बड़े प्रेम से पूछा- कहो बालक ! आधी रात को कैसे कष्ट किया? कुछ काम है क्या? चोर बोला- महाराज! मैं दिन भर का भूखा हूं.
साधु बोले- ठीक है, आओ बैठो. मैंने शाम को धूनी में कुछ शकरकंद डाले थे. वे भुन गये होंगे, निकाल देता हूं. तुम्हारा पेट भर जायेगा. शाम को आये होते तो जो था हम दोनों मिलकर खा लेते.
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पेट का क्या है बेटा! अगर मन में संतोष हो तो जितना मिले उसमें ही मनुष्य खुश रह सकता है. यथा लाभ संतोष’ यही तो है. साधु ने दीपक जलाया, चोर को बैठने के लिए आसन दिया, पानी दिया और एक पत्ते पर भुने हुए शकरकंद रख दिए.
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