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भगवान श्रीकृष्ण अपनी रानियों से हास-परिहास कर रहे थे. रूक्मिणी जी को भगवान स्वयंवर से भगा लाए थे. उनरे भाई रुक्मी और अन्य राजाओं के साथ युद्ध भी करना पड़ा था.
एक दिन भगवान ने रुक्मिणीजी से कहा- प्रिय! बड़े-बड़े नरपति जो ऐश्वर्य में कुबेर और इंद्र जैसे थे, सुंदरता में कामदेव जैसे थे, बल में भी मुझसे बहुत आगे थे. फिर उन्हें छोड़कर मुझसे विवाह क्यों किया?
रूक्मिणी जी को छेड़ते हुए प्रभु बोले- मैं तो किसी भी प्रकार तुम्हारे योग्य नहीं. मैं तो जरासंध आदि राजाओं से डरकर समुद्र की शरण में आ बसा हूं. मेरे वेष का कोई ठिकाना नहीं है.
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