अर्जुन का दंभ चूर करने के लिए श्रीकृष्ण को लीला करनी पड़ी. सुदर्शन चक्र का सहयोग लेना पड़ा, कच्छप रूप पुनः लेना पड़ा. दंड देने के बाद प्रसाद भी देते हैं श्रीकृष्ण. उन्होंने इस लीला से महाभारत में अर्जुन की जीत पक्की कराई. रामसेतु की एक कथा का आनंद लीजिए.
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बात तब की है जब पांडव जुए में राजपाट हारकर वनवास झेल रहे थे. भगवान श्रीकृष्ण तो अंतर्यामी ठहरे. उन्होंने देख लिया था कि पांडव चाहे जितनी शर्तें पूरी कर लें, बिना युद्ध उन्हें कुछ न मिलेगा. महाभारत तो होगा ही. धर्मयुद्ध की तैयारी के लिए श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सुझाव दिया कि विभिन्न देवताओं को प्रसन्नकर उनसे शक्तियां प्राप्त करो. अर्जुन भगवान के आदेश पर प्रत्येक तीर्थ पर गए. इसी यात्रा में वह रामेश्वरम गए और रामसेतु के दर्शन किए.
रामसेतु के दर्शन के बाद अर्जुन को उपस्थित समुदाय से रामसेतु निर्माण में भगवान श्रीराम को आई बाधाओं, वानर सेना के परिश्रम के बारे में सुनने को मिला.
अर्जुन अहंकारवश सोचने लगे कि श्रीराम अतुलनीय धनुर्धर थे. फिर उन्हें सेतु बनाने के लिए वानर सेना से पत्थर क्यों डलवाने पड़े. वह अपने बाणों की सहायता से समुद्र पर आसानी से यह रामसेतु बना सकते थे. अर्जुन के मन का कौतूहल अभिमान के रूप में छलकने लगा.
भगवान को भक्त का अभिमान कहां भाता है. तभी सागर से ऊंची लहरें उठीं और अर्जुन को उठाकर दूर फेंक दिया. अर्जुन तमतमा गए.
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अर्जुन अपने अभिमान में चूर सागर की ऊंची उठती लहरों को देखकर चिल्लाए- हे सागर! तेरा अभिमान बहुत ज्यादा हो गया है. मैं जरा सा असावधान था तो तूने मुझे उठाकर उछाल दिया. मेरे गांडीव और और मेरे दिव्यास्त्रों की शक्ति से संभवतः तू परिचित नहीं. नदियों के जल पर आश्रित रहने वाले सागर मुझे पता है तेरा अभिमान क्यों बढ़ गया है. श्रीराम ने तेरे आगे याचना की इसलिए तेरा अभिमान बढ़ गया है.
मुझे तो आश्चर्य इस बात का है कि श्रीराम जैसे धनुर्धर ने तुझ पर सेतुनिर्माण क्यों कराया. उन्हें वानरों की सहायता से ईंट पत्थर क्यों डालना पड़ा. मैं तो अपने बाणों से तुझे बांध लूं. तेरे ऊपर ऐसे रामसेतु का निर्माण पलभर में कर सकता हूं.
अर्जुन क्रोध में ऐसे ही बड़बड़ाते जा रहे थे. हनुमानजी दैवयोग से वहीं रामसेतु के पास विश्राम कर रहे थे. हनुमानजी ने यह बात सुनी तो उन्हें बात चुभ गई. श्रीराम के कार्य पर प्रश्न खड़े करने वाले इस वीर को जरा मजा चखाया जाए.
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हनुमानजी आगे और अर्जुन से बोले- सुनो धनुर्धर मैं तुम्हारी बातें सुन रहा था. तुम अहंकारी प्रतीत होते हो. तुम इस रामसेतु जैसे सेतु को पलभर में बनाने का शोर करते हो. मैं तो अब वृद्ध शक्तिहीन वानर हूं. तुम सचमुच धनुर्धर हो तो क्या बाणों से एक ऐसा पुल बना सकते हो जो सिर्फ मेरा भार सहन कर सके. सारी वानर सेना और श्रीरामजी की बात तो दूर इस वृद्ध वानर का भार सहने वाला सेतु बनाकर दिखा दो तो जानूं.
अर्जुन इस चुनौती से तैश में आ गए. उन्होंने दिव्य बाण चलाए और फटाफट हनुमानजी के लिए रामसेतु के बराबर में एक सेतु बना दिया. अर्जुन से हनुमानजी को संकेत किया तो हनुमानजी ने अपना एक पांव रखा. पहले ही पग पर सेतु धंसकर समुद्र में समा गया.
हनुमानजी हंसने लगे. वह रामसेतु को दिखाकर अर्जुन को चिढ़ा भी रहे थे. अर्जुन के तो लज्जा की कोई सीमा ही न रही. उन्होंने फिर प्रयास किया. हनुमानजी ने फिर वैसा ही किया. अर्जुन बार-बार अपने दिव्यास्त्रों का आह्वान कर पुल बनाते और हनुमानजी ध्वस्त कर देते.
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अर्जुन को आत्मग्लानि हो रही थी. मेरी जिस धनुर्विद्या पर पांडवों का पूरा मान टिका हुआ है उसमें इतना भी सामर्थ्य नहीं कि वह एक वानर के चलने योग्य पुल बना सके.
अर्जुन ने प्रण किया कि अगर इस बार भी वह असफल रहे तो समुद्र में कूदकर प्राण दे देंगे. अर्जुन ने अपनी समस्त शक्तियों का आह्वान किया. श्रीकृष्ण का स्मरणकर तीर चलाया और रामसेतु के बराबर में एक और सेतु बनाया.
हनुमानजी फिर उस सेतु को तोड़ने के लिए चढ़े लेकिन श्रीकृष्ण का सुदर्शन चक्र उसका आधार बन गया जिससे सेतु टूट नहीं पाया.
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Jai sh. Ram ki.. jai sh. Krishna ki.. jai Bajrang Bali ki.. prabhu sharnam ka dhanyawad itni man ko mohne wali rachna karne k liye
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