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उर्वशी ने पुरुरवा को नग्नावस्था में देख लिया. क्रोध से उर्वशी शर्त के मुताबिक स्वर्ग चली गई. पुरुरवा उसके प्रेम में व्याकुल भटकते-भटकते कुरुक्षेत्र पहुंचे. वहां उन्होंने सरस्वती के तट पर उर्वशी को जलक्रीडा करते देखा.
राजा ने उर्वशी को मनाने के लिए उसका बहुत अनुनय विनय किया. लेकिन उर्वशी मानने को तैयार न थी. जब पुरुरवा ने अपने प्राण त्यागने की बात कही तो उर्वशी दयालु हो गई.
उर्वशी ने कहा कि यदि पुरुरवा अपने राजकाज पर ध्यान दे तो वह वह साल के अंत में एक रात्रि के लिए पुरुरवा के पास आएगी. पुरुरवा ने कहा कि वह उस रात्रि की प्रतीक्षा करेगा.
अपना वचन निभाते हुए उर्वशी पुरुरवा के पास आई. दोनों का मिलन हुआ. पुरुरवा और उर्वशी के प्रेम पर देवता और गंधर्व तक मुग्ध थे. देवताओं ने उर्वशी को बताया था कि पुरुरवा मृत्युंजय होगा. यज्ञ करके अन्तत: स्वर्ग का अधिकारी बनेगा.
देवताओं ने पुरुवरा को पवित्र अग्नि देकर कहा कि इस अग्नि से यज्ञ करने पर तुम पवित्र होकर स्वर्ग में रहने के अधिकारी हो जाओगे. पुरुरवा एक थाली में स्थापित उस देवअग्नि को लेकर पृथ्वी पर लौटा.
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