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उर्वशी भूलोक में पहुंचकर पुरुरवा से मिली. पुरुरवा ने उस अनिंद्य सुन्दरी को अपनी जीवनसंगिनी बनाने का प्रस्ताव रखा. उर्वशी ने कहा कि वह जीवनसंगिनी बनेगी लेकिन उसकी तीन शर्तें हैं. शर्त भंग होने पर वह वापस चली जाएगी.

उर्वशी की पहली शर्त थी कि पुरुरवा उसकी सहमति से ही समागम कर सकेगा. दूसरी शर्त, समागम के अलावा पुरुरवा नग्न रूप में कभी भी उर्वशी के सामने नहीं आएगा. तीसरी शर्त थी- पुरुरवा उवर्शी के पुत्र समान प्रिय दो मेमनों की रक्षा करेगा.

शर्त स्वीकारने पर उर्वशी ने पुरुरवा से विवाह कर लिया. जल्द ही इंद्र और अन्य देवताओं को उर्वशी की कमी खलने लगी. उन्होंने उर्वशी को वापस लाने की जिम्मेदारी गंधर्वों को सौंपी.

एक रात विश्वावसु और अन्य गन्धर्व चुपके से उर्वशी के मेमनों का अपहरण करने आ गए. शयनकक्ष में दोनों मेमने जिन्हें वह पुत्रवत स्नेह करती थी उर्वशी के पलंग से बंधे थे.

मेमनों के चिल्लाने पर उर्वशी ने पुरुरवा को उनकी रक्षा के लिए कहा. पुरुरवा जैसी अवस्था में थे, वैसे ही तलवार लेकर गंधर्वों के पीछे भागे. उनके वस्त्र जमीन पर गिर गए. तभी योजना अनुसार गन्धर्वों ने वहाँ माया से प्रकाश फैला दिया.

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