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हिरण्याक्ष के कोप से पृथ्वी को मुक्त कराने के लिए भगवान विष्णु वे वाराह अवतार लिया था. उन्होंने पृथ्वी को मुक्त करा लिया तो पृथ्वी ने सकाम रूप से उनकी स्तुति की और उनसे ज्ञान चर्चा के लिए अपने साथ रखा.

पृथ्वी ने पूछा- हे नाथ वसु और रैभ्य ने बृहस्पति से जब पूछा कि मोक्ष प्राप्ति कर्म से होती है या ज्ञान से? तब बृहस्पति ने उनकी इस शंका का निवारण कर दिया. यह आप बता चुके हैं.(देखें कथा- मोक्ष का अधिकारी कौन) फिर वसु ने क्या किया?

श्रीविष्णु बोले- पृथ्वी! वसु का मन सांसारिकता से भर गया था. अपने बेटे विवस्वान को राजपाट सौंपकर उन्होंने पुष्कर का रुख किया. वहां पहुंचकर पुंडरीकाक्ष स्त्रोत की कठिन साधना की. उसके फलस्वरूप वह मुझमें ही लीन हो गए.

पृथ्वी ने कहा-हे नारायण यदि पुंडरीकाक्ष की महिमा इतनी अधिक है तो मुझे कृपाकर पुंडरीकाक्ष स्त्रोत की महिमा और उससे जुड़ी कथा बताने का कष्ट करें.

श्रीहरि ने कहा- वसु पुष्कर में पुंडरीकाक्ष स्त्रोत का लगातार जप करते जा रहे थे. इससे अंतत: यह स्थिति होती है कि जिसमें सारा जगत विष्णुमय हो जाता है.

अभी वसु पाठ कर ही रहे थे कि उनके शरीर से नीले रंग के शरीर वाला एक व्यक्ति जिसकी आंखें अंगारे की तरह लाल थी और देखने में भयानक लगता था, प्रकट हुआ. वह वसु के सामने हाथ जोड कर बोला- अब मेरे लिए क्या आदेश है राजन?

वसु ने उससे पूछा- तुम हो कौन, क्या करने आये हो? देखने में व्याध या शिकारी जैसे लगते हो. तुम यहां क्यों आए हो. उस भयानक पुरुष ने अपने बारे में बताना शुरू किया.

महाराज! यह कलियुग में आपके पिछले जन्म की बात है. आप दक्षिण के जनस्थान राज्य के राजा थे. एक बार आप जंगल में शिकार खेलने गए. आपने मनोरंजन के लिए असंख्य जीवों को मारा.
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