कुल के प्राणी का प्रेत हो जाना एक बड़ी बाधा भी है और कुयोग भी. यदि पितर प्रेत हो जाएं तो वह परिवार कभी फलता-फूलता नहीं. जब तक पितर अतृप्त रहें उस परिवार के सदस्यों की तरक्की रूक जाती है. काम बनते-बनते बिगड़ जाते हैं. बीमारी घेरे रहती है और कई बार परिवार में असमय मृत्यु भी होती है. इसे पितृदोष कहते हैं.
कैसे बनते हैं प्रेत, कैसे होगी मुक्ति?

अब आपको गरूड़ पुराण की एक कथा सुनाते हैं कि मनुष्य प्रेतयोनि क्यों लेता है? उससे मुक्ति कैसे होती है?
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बात सतयुग की है. बंग देश में बभ्रुवाहन नाम का राजा था. कहते हैं उसके राज्य में कोई भी पापी नहीं रहता था. राजा धर्मालु था और बहुत वीर था. एक बार राजा सौ घुड़सवार सैनिकों के साथ शिकार खेलने गया.
कुछ दूर जाने पर राजा बभ्रुवाहन को नन्दनवन के समान एक घना वन नजर आया. यह वन बिल्ब, मंदार, खदिर, कैथ तथा बांस के वृक्षों से भरा हुआ था. वह जलरहित वन भयंकर और विशाल क्षेत्र में फ़ैला हुआ था. राजा वन में शिकार करने लगा.
उसे एक हिरण दिखा. राजा ने एक हिरन की कमर में तीर मारा. तीर लगने से घायल मृग बडी तेजी से दौडा. राजा ने मृग का पीछा किया. घायल हिरण के पीछे पीछे भागता राजा इस वन से दूसरे घनघोर वन में पहुंच गया.
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राजा अपने साथियों से भटक चुका था. वह और उसका घोड़ा दोनों बहुत थक गए थे. प्यास से दोनों व्याकुल थे. राजा सरोवर को खोजने लगा. राजा ने ध्यान लगाकर सुना तो उसे हंसों और सारस पक्षियों की आवाज सुनाई दी.
अगले पन्ने पर जानें राजा को प्रेतों ने क्यों घेरा. प्रेतों ने उसे क्या लक्षण बताए. प्रेतयोनि के क्या कारण बताए.
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