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विवाह के कुछ समय पश्चात भृगु अपनी पुत्रवधू को आशीर्वाद देने आए और सत्यवती से वर मांगने को कहा. गाधि को पुत्र था इस कारण वह चिंतित रहते थे. सत्यवती ने उन से स्वयं और अपनी माता दोनों के लिए एक उत्तम पुत्र की याचना की.

भृगु ने सत्यवती को अभिमंत्रित चरू के दो पात्र दिए और बोले- इस चरू को ग्रहण करने के बाद तुम्हारी माँ पुत्र की इच्छा लेकर पीपल का अलिंगन करें और तुम ऐसी कामना लेकर गूलर का आलिंगन करना. सावधान चरुओं की अदला-बदली न हो.

सत्यवती की माँ ने सोचा हो न हो भृगु ने अपनी पुत्रवधू को उत्तम सन्तान का चरु दिया होगा. लालच में उसने चरू की अदला-बदली कर दी. भृगु को पता चल गया. वह क्रोध में भरकर सत्यवती के पास आए.

भृगु बोले- तुम्हारी माता ने छल करके तुम्हारे चरु का सेवन कर लिया है. इसलिए अब तुम्हारी सन्तान ब्राह्म्ण कुल में होकर भी स्वभाव से क्षत्रिय होगी और तुम्हारी माता की सन्तान क्षत्रिय होकर भी ब्राह्मण जैसा आचरण करेगी.

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