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इसी बीच अंधक के एक पुत्र कनक ने इंद्र को युद्ध के लिए ललकारा. इंद्र के हाथों कनक का वध हो गया. अंधकासुर के भय से घबराएं इंद्र शिवजी की शरण में पहुंचे.
महादेव ने इंद्र को अभयदान दिया. क्रोधित अंधकासुर कैलाश पर सेना लेकर चढ़ आया. उसने वहां देवी पार्वती को देख लिया और मोहित हो गया.
महादेव अपने अंश का वध नहीं करना चाहते थे. उन्होंने अंधकासुर को तरह-तरह से समझाया लेकिन वह नहीं माना.
महादेव और अंधक में संग्राम हुआ. इसी बीच ग्रहों के सेनापति मंगल का जन्म हुआ. शुक्राचार्य को शिवजी द्वारा निगल लेने और अंधकासुर को शिवजी ने हजार वर्ष अपने त्रिशूल पर टांगकर रखा फिर अंधक को अपना गण बनाया. यह सारी कथा विस्तार से अगले तीन और पोस्ट में आज ही पढ़ें.
संकलन व प्रबंधन: प्रभु शरणम् मंडली
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