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असुरगुरू शुक्राचार्य के परामर्श पर उसने ब्रह्मा की तपस्या शुरू की. कई सहस्त्र वर्ष के घोर तप से ब्रह्रमा प्रसन्न हुए और उससे वरदान मांगने को कहा.

अंधक ने दो वरदान मांगे- पहला उसे त्रिकालदर्शी नेत्र मिल जाएं और दूसरा वह अमर हो जाए. ब्रह्मा ने नेत्र की बात तो मान ली और पर अमरता देने से मना कर दिया.

ब्रह्मा ने कहा- जिसने जीवन लिया है उसकी मृत्यु निश्चित है. अपनी पसंद से अपनी मृत्यु की शर्त चुन लो. मैं वह वरदान दे सकता हूं.

अंधक ने बुद्धि लगाई. उसने मांगा- मेरे शरीर के रक्त से मेरे जैसे जीव पैदा हो जाएं और मेरा अंत तभी हो जब मैं अपनी मातातुल्य स्त्री पर आसक्त हो जाउं.

अंधक को यह पता था कि वह स्त्री-पुरुष को संयोग से नहीं बल्कि शिव के योगबल से उत्पन्न हुआ है. सो उसकी माता का प्रश्न ही नहीं है.
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3 COMMENTS

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