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नंदभद्र अधिक विवाद नहीं चाहते थे, उठकर चले गये. पर उनके मन में यह विचार आया कि भगवान् सदाशिव का साक्षात् दर्शन करके पूछूं- आप आपके बनाये संसार सुख-दु:ख, जन्म-मरण आदि क्लेश क्यों है? यह दोषरहित क्यों नहीं है.

नंदभद्र शिवमंदिर आये. कपिलेश्वर लिंग की पूजा भगवान के आगमन की प्रतीक्षा करने लगे. सोच लिया कि जब तक भोलेनाथ दर्शन नहीं देंगे, तब तक मैं ऐसे ही खड़ा रहूँगा. लगातार तीन दिन और तीन रात नंदभद्र वैसे ही खड़े रहे.

चौथे दिन एक बालक उस मंदिर में आया. वह गलितकुष्ठ का रोगी भयानक पीड़ा से कराह रहा था. उसने नंदभद्र से पूछा- आप इतने सुंदर एवं स्वस्थ हैं, फिर भी आप दुःखी क्यों लग रहे है? नंदभद्र ने अपना संकल्प उसे बताया.

बालक ने कहा- अनचाहे का मिलना और मनचाहे का बिछुड़ना, इससे मानसिक कष्ट होता है. रोग और परिश्रम से शरीर को कष्ट होता है. मानसिक कष्ट से शारीरिक एवं शारीरिक कष्ट से मानसिक कष्ट होता है. औषधि से शारीरिक कष्ट दूर होते है एवं ज्ञान से मानसिक.

बालक से ज्ञान भरी बात सुनकर नंदभद्र ने फिर पूछा- बालक! पापी मनुष्य भी इतने धनी और सुखी क्यों होते हैं? भगवान की दुनिया में यह दोष क्यों?

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