krishna pandava
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महाराज युधिष्ठिर ने इंद्रप्रस्थ का राजपाट संभाल लिया था. कौरवों से मिले बंजर प्रदेश को पांडवों ने अपनी लगन से समृद्ध बना लिया था. महाराज युधिष्ठिर काफी दान देते थे. धीरे-धीरे उनकी प्रसिद्धि दानवीर राजा के रूप में होने लगी. पांडवों को इसका अभिमान हो गया.

भगवान श्रीकृष्ण पांडवों के सबसे बड़े हितैषी थे. उन्होंने भांप लिया कि पांडवों और यहां तक कि स्वयं धर्मराज युधिष्ठिर को दान का अभिमान होने लगा है. प्रभु को अपने भक्तों का अभिमान तो बिल्कुल पसंद नहीं.

एक बार श्रीकृष्ण इंद्रप्रस्थ पहुंचे. भीम व अर्जुन ने युधिष्ठिर की दानशीलता की प्रशंसा शुरू कर दी. प्रभु ने उन्हें बीच में ही टोकते हुए कहा- निःसंदेह महाराज युधिष्ठिर बड़े दानी हैं लेकिन कर्ण जैसा दानवीर कोई दूसरा नहीं है.

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