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पहले ही दिन कई प्रकार के पकवान बनाकर उसने पंडितजी के सामने परोस दिया. पर ज्यों ही पंडितजी ने खाना चाहा, उसने सामने से परोसी हुई थाली खींच ली.
इस पर पंडित जी क्रुद्ध हो गए और बोले, यह क्या मजाक है? गणिका ने कहा, यह मजाक नहीं है पंडित जी, यह तो आपके प्रश्न का उत्तर है.
यहां आने से पहले आप भोजन तो दूर, किसी के हाथ का पानी भी नहीं पीते थे,मगर स्वर्ण मुद्राओं के लोभ में आपने मेरे हाथ का बना खाना भी स्वीकार कर लिया.
यह लोभ ही पाप का गुरु है.
संकलन व प्रबंधन: प्रभु शरणम् मंडली
Nice story.
good