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राक्षसों को सुतीक्ष्ण ने अपने तपोबल से भस्म कर दिया. सुतीक्ष्ण को अगस्त्य मुनि ने श्रीराम के दर्शन कराने की गुरूदक्षिणा मांगी थी. वह श्रीराम की प्रतीक्षा कर रहे थे.
पति के बाद माता-पिता विहीन होकर कर्कटी एक पर्वत पर एकांतवास करके जीवन काट रही थी. एक बार कुंभकर्ण उधर से गुजरा और कर्कटी पर आसक्त हो गया. उसने कर्कटी के साथ व्याभिचार किया जिसके परिणामस्वरूप भीम कर्कटी के गर्भ में आया.
भीम को अपनी माता से जब इन बातों का पता चला तो वह भगवान श्रीराम पर बड़ा क्रोधित हुआ. अपने नाना-नानी, माता के प्रथम पति और उसके अपने पिता, तीनों के अंत का कारण वह श्रीराम को समझने लगा.
माता ने उसे बताया कि श्रीराम विष्णुजी के अवतार हैं तो नारायणद्रोही हो गया. वह निरंतर भगवान श्री हरि के वध का उपाय सोचने लगा. इसके लिए उसने एक हजार वर्ष तक कठिन तपस्या की.
उसके तप से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने उसे लोक विजयी होने का वर दे दिया. ब्रहमाजी का वरदान पाकर वह सारे प्राणियों को पीड़ित करने लगा. देवलोक पर आक्रमण करके इंद्र आदि देवताओं को वहां से बाहर निकाल दिया.
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