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तब कालभीति ने कहा– जो पाप के काल हैं जिनके कंठ में काला चिन्ह सुशोभित होता है तथा जो संसार के कालस्वरूप हैं, उन भगवान् महाकाल की मैं शरण लेता हूं. आप हमें शरण दीजिए. आपको बारम्बार नमस्कार है.

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कालभीति की स्तुति पर महादेव उस लिंग से प्रकट हुए और कहा– ब्राह्मण! तुमने इस महातीर्थ में रहकर मेरी जो आराधना की है, उससे मैं संतुष्ट हूं. अब कालमार्ग से तुम निर्भय रहो. मैं ही मनुष्य रूप में प्रकट हुआ था. मैंने यह गड्ढा और तालाब सब तीर्थों के जल से भरा है. यह परम पवित्र जल तुम्हारे लिए ही लाया था. तुम मुझ से कोई मनोवांछित वर मांगो.

कालभीति ने कहा – प्रभु! यदि आप मुझपर प्रसन्न हैं, तो सदा यहां निवास करें. इस शिवलिंग पर जो भी दान, पूजन किया जाए, वह अक्षय हो. आपने काल से मुझे मुक्ति दिलाई है,इसलिए यह शिवलिंग महाकाल के नाम से प्रसिद्ध हो.

भगवान बोले– जो चतुर्दशी, अष्टमी, सोमवार तथा पर्व के दिन इस सरोवर में स्नान करके इस शिवलिंग की पूजा करेगा, वह शिव को ही प्राप्त होगा. यहां किया हुआ जप, तप और रूद्र जप सब अक्षय होगा. तुम नंदी के साथ मेरे दूसरे द्वारपाल बनोगे.

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काल पर विजय पाने से तुम महाकाल के नाम से प्रसिद्ध होगे. शीघ्र ही राजर्षि करन्धम यहां आएंगे उन्हें धर्म का उपदेश करके तुम मेरे लोक में चले आओ. यह कहकर भगवान रूद्र उस लिंग में ही लीन हो गए.
(स्रोत : स्कंद पुराण)

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