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कालभीति ने कहा- मेरे गुरु के अनुसार जिसके कुल का ज्ञान न हो उसका अन्न जल ग्रहण करने वाला तत्काल कष्ट में पड़़ता है. मैं पानी नहीं पिउंगा श्रीमन्!.

आगंतुक बोला– तुम्हारी बात पर हँसी आती है. जब सब में भगवान शंकर ही निवास करते हैं, तो किसी को बुरा नहीं कहना चाहिए क्योंकि इससे भगवान शंकर की ही निंदा होती है. यह जल अपवित्र कैसे हुआ? घड़ा मिट्टी का बना है और आग में पका है, फिर जल से भर दिया गया. मेरे छूने से अशुद्धि आ गयी? तो अगर मैं अशुद्ध होकर इसी धरती पर हूं तो आप यहां क्यों रहते हैं? आकाश में क्यों नहीं रहते?

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कालभीति ने कहा– सभी में शिव ही हैं, सब को शिव मानने वाले नास्तिक लोग खाना छोड़ कर मिट्टीे क्यों नहीं खाते? राख और धूल क्यों नही फांकते? मैं यह नहीं कह रहा कि सब में शिव नहीं है. भगवान शिव सबमें हैं ही.

मेरी बात ध्यान से सुनिए. सोने के गहने बहुत तरह के बनते हैं. कुछ शुद्ध सोने के तो कुछ मिलावटी. खरे, खोटे सभी आभूषणों में सोना तो है ही. इसी प्रकार ऊंच, नीच, शुद्ध, अशुद्ध सबमें भगवान् सदाशिव विराजमान हैं.

जैसे खोटा सोना खरे सोने के साथ मिलकर एक हो जाता है इसी तरह इस शरीर को भी व्रत, तपस्या और सदाचार आदि के द्वारा शोधित करके शुद्ध बना लेने पर मनुष्य निश्चय ही खरा सोना होकर स्वर्गलोक में जाता है.

तो शरीर को खोटी अपवित्र चीजों से बिगाड़ना ठीक नहीं. जो व्रत, उपवास करके शुद्ध हो गया है, वह भी यदि इस तरह अशुद्ध होने लगे तो थोड़े ही दिनों में पतित हो जायेगा इसलिए आपका दिया पानी तो मैं कभी नहीं पिउंगा.

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