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अर्जुन के न होने से पांडव चिंता में थे. तभी महर्षि बृहदश्व वहां पधारे. युधिष्ठिर ने उन्हें जुए में हारने से लेकर द्रोपदी के अपमान और अर्जुन के जाने की सारी पीड़ा सुनाई.

महर्षि बृहदश्व ने युधिष्ठिर को सांत्वना देते हुए कहा- राजन! विधि के विधान कोई नहीं टाल सकता. अर्जुन दिव्यास्त्रों का ज्ञान ले रहे हैं. आप उनकी ओर से निश्चिंत रहें. जुआ मनुष्य के पतन का कारण होता है. शिवजी के परमप्रिय राजा नल को जुए की लत लगी. इस लत के कारण सभी कष्टों को भोगने वाले राजा नल की कथा आपको सुनाता हूं.

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निषध देश के राजा वीरसेन के प्रतापी और धर्मात्मा पुत्र का नाम था नल. नल प्रजापालक और उत्तम गुणों से युक्त थे लेकिन एक अवगुण राजा में यह था कि वह जुए का शौक रखते थे. विदर्भराज भीम भी नल के समान ही सर्वगुण सम्पन्न थे. उन्होंने दमन ऋषि को प्रसन्न करके वरदान से चार उत्तम संतान प्राप्त किए- तीन पुत्र और एक पुत्री.

पुत्रों के नाम थे दम,दान्त व दमन और पुत्री थी दमयन्ती. दमयन्ती, देवी लक्ष्मी के समान रूपवती थीं. उनके रूप की बराबरी देवताओं और यक्षों की कन्या भी नहीं कर सकती थी.

एक दिन राजा नल ने अपने महल के उद्यान में कुछ हंसों को देखा. उन्होंने एक हंस को पकड़ लिया.

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हंस ने कहा- राजा नल यदि आप मुझे छोड़ दें तो हम सभी दमयंती के पास जाकर आपका ऐसा बखान करेंगे कि वह आपको पतिरूप में चुनेंगी.

नल ने हंस को छोड़ दिया. वे सब हंस उड़कर राजकुमारी दमयंती के पास गए. दमयन्ती उन्हें देखकर बहुत खुश हुई पकडऩे के लिए दौडी. दमयन्ती जिस हंस को पकड़ती, वही हंस बोल उठता- निषध का राजा नल सौंदर्य में साक्षात कामदेव का स्वरूप है. वह अश्विनी कुमार के समान गुणवान है. जैसे तुम स्त्रियों में रत्न हो, वैसे ही नल पुरुषों में भूषण है. तुम दोनों की जोड़ी बहुत सुंदर है. तुम दोनों की जोड़ी संसार की सर्वश्रेष्ठ जोड़ी होगी.

सभी हंस बार-बार ऐसा ही कहते तो दमयंती नल के प्रति आकर्षित होने लगी.

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