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ब्राह्मण ने यह बात दमयंती को बताई तो वह जान गई कि बाहुक ही राजा नल हैं. उसने माता को सारी बात बताई और बात को गुप्त रखने को कहा.
सुदैव को राजा का संदेश लेकर अयोध्या भेजा गया. दमयंती ने सुदेव से कहा- अयोध्या के राजा ऋतुपर्ण से कहिए नल जीवित है या नहीं ईश्वर जाने. दमयंती पुनः स्वयंवर रचा रही है. बड़े-बड़े राजा और राजकुमार जा रहे हैं. कल सूर्योदय पूर्व वह पति का चयन करेगी. आप पहुंच सकें तो वहां जाइए.
सुदेव ने राजा ऋतुपर्ण से ऐसा ही कहा. ऋतुपर्ण ने बाहुक को बुलाया और कहा- कल दमयंती का स्वयंवर है. हमें शीघ्र वहां पहुंचना है. तुम मेरे शीघ्र पहुंचने का प्रबंध करो.
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ऋतुपर्ण की बात सुनकर नल का कलेजा फटने लगा. सोचा कि दमयंती ने दुखी और अचेत होकर ही ऐसा किया होगा. ऋतुपर्ण के रथ को नल हांक रहे थे. ऋतुपर्ण बाहुक पर विश्वास करते थे. रास्ते में ऋतुपर्ण ने कहा कि मैं तुम्हें पासे के वशीकरण की विद्या सिखा सकता हूं. बदले में तुम मुझे घोड़ों की विद्या सिखा दो.
नल ने पासे को वश में करने की विद्या जैसे ही सीखी, कलियुग नल के शरीर से बाहर आ गया. कलियुग ने नल का पीछा छोड़ दिया था लेकिन अभी नल का रूप नहीं बदला था. वह वैसे ही कुरुप थे. तेजी से रथ हांकते शाम होते-होते वे विदर्भ पहुंच गए. राजा भीमक ने ऋतुपर्ण को अपने महल बुलाया.
ऋतुपर्ण के रथ की गूंज से चारों दिशाएं गूंज उठीं. दमयंती रथ की घरघराहट से समझ गई कि जरूर इसको हांकने वाले मेरे पति हैं. अयोध्या नरेश ऋतुपर्ण का भीमक के दरबार में बहुत सत्कार हुआ. भीमक को पता नहीं था कि वे स्वयंवर का निमंत्रण पाकर आए हैं.
जब ऋतुपर्ण ने स्वयंवर की कोई तैयारी नहीं देखी तो समझ गए कि किसी ने गलत सूचना दी है. उन्होंने स्वयंवर की बात दबा दी.
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भीमक ने आने का कारण पूछा तो ऋतुपर्ण ने कहा कि वह सिर्फ भीमक को प्रणाम कहने आए हैं. बाहुक अश्वशाला में ठहरकर घोड़ों की सेवा में लग गया. दमयंती नल के दर्शन के लिए व्याकुल हो रही थी पर नल कहीं दिखते ही न थे. नल तो यही जानते थे कि दमयंती पुनः विवाह कर रही है. अतः वह अपना वेश बदलकर ही रहे.
दमयंती ने दासी को अश्वशाला भेजा और सारथी के बारे में पता लगाने को कहा. दासी ने बाहुक से राजा नल के बारे में पूछा.
बाहुक ने कहा- मुझे उसके संबंध में कुछ भी मालूम नहीं. सिर्फ इतना पता है कि इस समय नल का रूप बदल गया है. वह छिपकर रहते हैं. उन्हें या तो स्वयं वह या उनकी पत्नी दमयंती ही पहचान सकते हैं. अब दमयंती को यकीन होने लगा कि यही राजा नल है.
उसने दासी से कहा- तुम बाहुक के पास जाओ. बिना कुछ बोले देखती रहो और उनकी भाव-भंगिमाओं पर ध्यान दो. आग मांगे तो मत देना, जल मांगे तो देर कर देना. फिर सारी बात मुझे आकर कहो.
दासी ने आकर बताया कि बाहुक ने हर तरह से अग्रि, जल व थल पर विजय प्राप्त कर ली है. वह देवताओं जैसे हैं. मैंने आज तक ऐसा पुरुष नहीं देखा. दमयंती को विश्वास हो गया कि बाहुक ही राजा नल है.
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