नल दमयंती की कथा प्रेम की उन पौराणिक कथाओं में है जो अमर हो गए. शिवभक्त भील दंपती शिवकृपा से राजकुल में जन्मे. दोनों में पहले प्रेम फिर बिछोह और शिवकृपा से पुनर्मिलन.

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कहते हैं नल दमयंती की अमर प्रेमकथा सुनने से पति-पत्नी के बीच कटुता मिटती है, प्रेम पनपता है. दोनों के प्रेम की कथा है ही ऐसी. दमयंती ऐसी रूपसी थी कि स्वयं देवता लालायित थे उससे विवाह को. रूप-गुण और शौर्य में नल भी कम न थे. दोनों ने एक दूसरे के बारे में सुना. नल दमयंती एक दूसरे से कभी मिले भी न थे. दोनों ने बस सुन रखा था एक दूसरे के बारे में. बस सुनकर ही ऐसा सच्चा प्रेम करने लगे कि उन्हें मिलाने को स्वयं शिवजी को अवतार लेना पड़ा.

दमयंती जब हंसती थी तब दिकपाल यम ऐसे मंत्रमुग्ध हो जाते थे कि किसी के प्राण हरने की बात भूल जाएं. वायुदेव का वेग बिगड़ जाता था, इंद्र खो जाते थे. कामदेव सरीखे रूपवान नल के जोड़ का अश्वारोही तो इंद्र की सेना में भी न था. घोड़े पर सवार नल को भूलोक में कोई रोक नहीं सकता था. आखिर शिवजी किसी सामान्य जोड़े को मिलाने के लिए अवतार तो न लेंगे.

पर शिवजी ने अवतार लिया क्यों?

नल दमयंती की प्रेमकथा इतनी विविधताओं, इतने रंगों से भरी है कि इस पर न जाने कितने नाटक लिखे गए हैं. उस कथा में आपको पिरोने से पहले उसकी पृष्ठभूमि में ले चलूंगा. शिवजी दो प्रेमियों को मिलाने के लिए अवतार लेने लगे? यह बात ऐसा कौतूहल पैदा कर देती है कि नल दमयंती की प्रेम और विरह की कथा जानने से पहले शिवजी की कथा जानने की उत्सुकता हो जाए.

रूदन-हास विछोह और मिलन की नल दमयंती की कथा में जाने से पहले आपको एक महान शिवभक्त बाहुक की कथा में ले चलता हूं. साथ बने रहिएगा. बहुत विविधता है इस कथा में, बहुत तरह के भाव भरेंगे मन में. इसकी महिमा ऐसी है कि तिलचौथ या गणेश तिल चतुर्थी को नल दमयंती कथा सुनने का विधान है. इससे शिव-पार्वती समेत गणेशजी प्रसन्न होते हैं.

मैंने आपको शिवजी के अवतारों की चर्चा में महादेव के यतिनाथ और हंस अवतार की कथा सुनाई थी. भोलेनाथ अपने एक भक्त भील दंपत्ती की परीक्षा लेने आए. बड़ी कठिन परीक्षा ली भोलेनाथ ने. भील दंपती ने प्राण देकर परीक्षा पूरी की. दोनों के बीच का प्रेम देखकर शिवजी विभोर हो गए.

उन्होंने वरदान दिया कि भील पति-पत्नी का अगला जन्म राजकुल में होगा. दोनों की ख्याति देवलोक तक होगी. आज मेरे कारण दोनों अलग हुए हैं. मैं इन दोनों को मिलाने के लिए हंस के रूप में अंशावतार लूंगा. हंस अवतार की कृपा से दोनों का मिलन होगा. यही दोनों अगले जन्म में नल दमयंती हुए. भील-दंपती के शिवजी द्वारा परीक्षा लेने की  कथा विस्तार से नीचे पढ़ सकते हैं. (यतिनाथव हंस रूप में शिव अवतार)

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कथा आगे बढ़ाता हूं. शिवजी का आशीर्वाद फलीभूत हुआ. भील आहुक अगले जन्म में निषध देश के राजा वीरसेन के पुत्र राजा नल हुए. भीलनी आहुका विदर्भराज भीम की पुत्री राजकुमारी दमयंती हुईं.

कथा कई शास्त्रों में आती है. मैं महाभारत के अनुसार इसे आगे लेकर चलता हूं. पांडवों को बनवास हो गया था. वे वन में रहने लगे थे. श्रीकृष्ण और धृष्टद्युम्न उनसे मिलने वन में आए. भगवान श्रीकृष्ण ने बता दिया कि अब हर हाल में कौरवों-पांडवों में युद्ध होकर रहेगा. इसलिए पांडवों को तैयारी आरंभ करनी चाहिए.

श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को पूजा-पाठ से विभिन्न देवों को प्रसन्न करने का आदेश किया. जबकि अर्जुन को तप से महादेव और इंद्र को प्रसन्न करने को कहा.  भगवान के आदेश पर अर्जुन तप किया. महादेव और इंद्र दोनों को तप से प्रसन्न भी कर लिया. वरदान के रूप में अर्जुन स्वर्ग में रहकर दिव्यास्त्रों का ज्ञान लेने लगे.

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