सुप्रिय वैश्य की प्रार्थना सुनकर भगवान शिव एक ‘विवर’ अर्थात बिल से प्रकट हो गए. उनके साथ ही चार दरवाजों का एक सुन्दर मन्दिर प्रकट हुआ. उस मन्दिर के मध्यभाग में गर्भगृह में एक दिव्य ज्योतिर्लिंग प्रकाशित हो रहा था.

महादेव ने असुरों का संहार कर दिया. सुप्रिय ने उस ज्योतिर्लिंग का दर्शन और स्तुति की. भगवान ने भक्त सुप्रिय आदि की रक्षा के बाद उस वन को भी यह वर दिया कि ‘आज से इस वन में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र, इन चारों वर्णों के धर्मों का पालन किया जाएगा.

इस वन में शिवधर्म के प्रचारक श्रेष्ठ ऋषि-मुनि निवास करेंगे और यहां तामसिक दुष्ट राक्षसों के लिए कोई स्थान न होगा. राक्षसों पर आए इसी भारी संकट को देखकर राक्षसी दारूका ने दीनता के साथ देवी पार्वती की स्तुति की.

उसकी प्रार्थना से प्रसन्न माता पार्वती प्रकट हुईं. दारूका ने महादेव के वरदान से आए संकट का विवरण देकर कहा– ‘माँ! आप मेरे कुल की रक्षा करें. माता ने उसके कुल की रक्षा का आश्वासन दिया.

भगवान शिव से कहा– नाथ! आपकी कही हुई बात इस युग के अन्त में सत्य होगी. लेकिन मेरे विचार से तब तक आप तामसिक सृष्टि भी चलने दें ऐसा मेरा विचार है.

माता पार्वती ने शिवजी से आग्रह किया- मैं भी आपके आश्रय में रहने वाली आपकी ही हूं. इसलिए मेरे द्वारा दिए वचन को भी पूर्ण करना आपका दायित्व है.

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