महर्षि और्व के शाप की सूचना जब देवताओं को हुई, तब उन्होंने राक्षसों पर चढ़ाई कर दी. राक्षसों पर भारी संकट आ गया. यदि वे देवताओं से युद्ध करते, तो शाप के कारण मारे जाते और युद्ध से बचने के लिए छिपें तो स्वयं भूखों मर जाएंगे.

उस समय दारूका ने राक्षसों को सहारा दिया. माता भवानी के वरदान का प्रयोग करते हुए वह सम्पूर्ण वन को लेकर समुद्र में जा बसी. इस प्रकार राक्षसों ने धरती को छोड़ दिया और निर्भयतापूर्वक समुद्र में निवास करते हुए वहां भी प्राणियों को सताने लगे.

एक बार उस समुद्र में व्यापारियों की बहुत-सारी नौकाएं जा रही थीं. राक्षसों ने उन्हें पकड़ लिया और बेड़ियों से बांधकर कारागार में बन्द कर दिया ताकि बाद में उन्हें खा सकें.

सुप्रिय’ नामक महान शिवभक्त वैश्य उस दल का प्रमुख था. सुप्रिय ललाट पर भस्म, गले में रुद्राक्ष की माला डालकर भगवान शिव की भक्ति करता था. बिना शिवजी की आराधना किए वह भोजन जल आदि भी नहीं लेता था.

कारागर में बंद सभी साथियों को उसने महादेव का आह्वान करने को कहा. उन्हें विधिवत शिव आराधना सिखाई और सभी रक्षा के लिए प्रभु का पंचाक्षर मंत्र ऊं नम: शिवाय का जप करते शिवजी का ध्यान करने लगे.

इसकी सूचना जब राक्षस दारूक को मिली, तो वह करागार में आकर सुप्रिय सहित सभी को मारने दौड़ पड़ा. सुप्रिय ने कातरस्वर से भगवान शिव को पुकारा. उनका चिन्तन करके उनके नाम-मन्त्र का जप करने लगा.

शेष अगले पेज पर. नीचे पेज नंबर पर क्लिक करें.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here