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उसके बाद भगवान भोलेनाथ का ध्यान करें. इसके बाद यदि नाग-नागिन के जोड़े की प्रतिमा (सोने, चांदी या तांबे से निर्मित) है तो अन्यथा तस्वीर के सामने मंत्र बोलें-
अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मानाभं च कम्बलम्।
शंखपाल धार्तराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा।।
एतानि नव नामानि नागानां च महात्मनाम्।
सायंकाले पठेन्नित्यं प्रात:काले विशेषत:।।
तस्मै विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत्।।
पूजा का संकल्प लें. नाग-नागिन के जोड़े की प्रतिमा का दूध से स्नान करवाएं. प्रतिमा नहीं है तो सिर्फ तस्वीर है तो एक कटोरे में इस भाव से दूध रखें कि आप नाग-नागिन का स्नान करा रहे हैं. दूध स्पर्श करा दें, तस्वीर से.
इसके बाद शुद्ध जल से स्नान कराकर गंध, पुष्प, धूप, दीप से पूजन करें तथा सफेद मिठाई का भोग लगाएं। इसके बाद सभी स्थानों पर पाए जाने वाली सर्प जाति को प्रसन्न करने के लिए निम्न प्रार्थना करें-
सर्वे नागा: प्रीयन्तां मे ये केचित् पृथिवीतले।।
ये च हेलिमरीचिस्था येन्तरे दिवि संस्थिता।
ये नदीषु महानागा ये सरस्वति गामिन:।
ये च वापी तडागेषु तेषु सर्वेषु वै नम:।।
नागपंचमी पूजा में सबसे प्रभावी नीचे लिखे मंत्र को बताया जाता है. यदि समय के अभाव में ऊपर बताई गई विधियों का पालन नहीं हो पा रहा, या पाठ नहीं हो पा रहा तो नीचे लिखे मंत्र का कम से कम आठ बार जप करें.
आज नौ विशेष नागों की पूजा बताई जाती है इसलिए कम से कम नौ बार या उससे अधिक यथासंभव नाग गायत्री मंत्र का जप कर लेना चाहिए-
ऊँ नागकुलाय विद्महे विषदन्ताय धीमहि तन्नो सर्प: प्रचोदयात्।
वैसे तो इतनी पूजा भी पर्याप्त है किंतु बहुत से लोगों के नाग कुलदेवता होते हैं. वे विधिवत पूजा के लिए मंदिरों में भी जाते हैं. उन्हें किसी नागमंदिर में या शिव मंदिर में सर्पसूक्त का पाठ भी कर लेना चाहिएः
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