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छोटी बहू को यह बात बहुत बुरी लगी. उसने अपने सर्प भाई को याद किया. भाई आया तो उसने प्रार्थना की- भैया! रानी ने हार छीन लिया है. तुम कुछ ऐसा करो कि जब वह हार उसके गले में रहे तब तक के लिए सर्प बन जाए.

डरकर जब वह हार मुझे लौटा दे तब हार हीरों और मणियों का हो जाए. सर्प ने ठीक वैसा ही किया. जैसे ही रानी ने हार पहना, वैसे ही वह सर्प बन गया. यह देखकर रानी चीख पड़ी और रोने लगी.

यह देखकर राजा ने सेठ के पास खबर भेजी कि छोटी बहू को तुरंत भेजो. सेठजी डर गए कि राजा न जाने क्या करेगा? वे स्वयं छोटी बहू को साथ लेकर उपस्थित हुए.

राजा ने छोटी बहू से पूछा- तूने क्या जादू किया है, मैं तुझे दण्ड दूंगा. छोटी बहू बोली- महाराज! धृष्टता क्षमा कीजिए, यह हार ही ऐसा है कि मेरे गले में हीरों और मणियों का रहता है और दूसरे के गले में सर्प बन जाता है.

यह सुनकर राजा ने वह सर्प बना हार उसे देकर कहा- मेरे सामने अभी इसे पहिनकर दिखाओ. छोटी बहू ने हार लेकर जैसे ही उसे पहना वैसे ही वह हीरे-मणियों का हो गया.

यह देखकर राजा को उसकी बात का विश्वास हो गया और उसने प्रसन्न होकर उसे बहुत सी मुद्राएं भी पुरस्कार में दीं. छोटी बहू अपने हार और उपहार के साथ घर लौट आई.

उसके धन को देखकर बड़ी बहू ने ईर्ष्या के कारण उसके पति को सिखाया कि छोटी बहू के पास कहीं से धन आया है. यह सुनकर उसके पति ने अपनी पत्नी को बुलाकर कहा- ठीक-ठीक बता ये धन तुझे कौन देता है? वह सर्प को याद करने लगी.
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