शिव-पार्वती रोचक कथा शृंखला की यह छठी कथा है. हमने पहले भी एक कथा प्रकाशित की थी. पूरी कथा के लिए देखें एप्प- Mahadev Shiv Shambhu.
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पिछली कथा से आगे…
यह कथा शृंखला उस वृहत कथा का भाग है जो भगवान शिव ने पार्वतीजी के मनोरंजन के लिए गोपनीय रूप से सुनाई थी परंतु उनके एक गण ने चोरी से सुन लिया था. क्रोधित पार्वतीजी के शाप से वह मनुष्य बना.

शिवजी की वह कथा कई महीने चली थी. पार्वतीजी ने शिवगण को कहा कि यदि वह उस कथा को पृथ्वी पर एक पिशाच को सुनाने के बाद प्रचार करे तो उसकी शाप मुक्ति होगी. मनुष्यरूप से शिवगण उसी कथा को सुना रहे हैं. गतांक से आगे…

राजा सहस्रणीक ने अपनी खोई रानी मृगावती को जमदग्नि के आश्रम से लिवा लाने के लिये उदयाचल की और कूच किया. शाम हो गयी पर उद्याचल अभी थोड़ा दूर था.

राजा ने एक तालाब के किनारे डेरा डाला. राजा के लिए रात भारी लग रही थी. उसने समय बिताने के लिए अपने मुंहलगे नौकर संगतक से कोई मनोरंजक कहानी सुनाने को कहा.

संगतक बोला- महाराज आप दुःखी न हों. वियोग के विरह के बाद मिलन के सुख का मजा ही कुछ और होता है. अब शीघ्र ही रानी आपसे मिलने वाले हैं. रात भर की ही देर है.

महाराज आपके मनोरंजन के लिए मैं मिलन और विछोह के बीच की इस रात पर एक कथा सुनाता हूं. संगतक ने जो कथा सुनाई वह इस प्रकार से है-
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