अब आप बिना इन्टरनेट के व्रत त्यौहार की कथाएँ, चालीसा संग्रह, भजन व मंत्र , श्रीराम शलाका प्रशनावली, व्रत त्यौहार कैलेंडर इत्यादि पढ़ तथा उपयोग कर सकते हैं.इसके लिए डाउनलोड करें प्रभु शरणम् मोबाइल ऐप्प.
Android मोबाइल ऐप्प के लिए क्लिक करें
iOS मोबाइल ऐप्प के लिए क्लिक करें
जनक बड़े ब्रह्मवेत्ता थे. उनके पास ज्ञानियों का जमावड़ा रहता था. एक ऋषि ने अपने पुत्र को ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति के लिए जनक के पास भेजा. ऋषिपुत्र जनक के पास आया. जनक पारखी थे, उस बालक के हाव-भाव से उसे पूरा समझ गए.
जनक ने महल में ही उसके रहने का प्रबंध कराया जो उसने स्वीकार लिया. अगले दिन जनक ने उसे उपदेशालय में बुलाकर आने का कारण पूछा.
ऋषिपुत्र ने कहा- मैंने सारे शास्त्र पढ़ लिए. यह संसार मिथ्या है. दुख औऱ मृत्यु तो सबसे समक्ष होना ही है. कुछ भी स्थिर नहीं है. फिर ब्रह्म क्या है? मुझे ब्रह्मज्ञान की अभिलाषा है.
जनक उसे उपदेश देने लगे. तभी एक सेवक ने आकर कहा- महाराज महल में आग लग गई है. जनक ने लापरवाही से मात्र सेवक की बात सुनी और टाल दी. वह उपदेश देने में लगे रहे.
थोड़ी देर में सेवक फिर लौटा. आग बढ़ती-बढ़ती कहां तक पहुंच चुकी है इसका पूरा ब्योरा दिया. जनक ने कहा- चिंता की बात है. परंतु तुम अभी जाओ. जनक फिर ऋषिकुमार को उपदेश देने लगे.
शेष अगले पेज पर. नीचे पेज नंबर पर क्लिक करें.