उद्दालक ऋषि ने अपने प्रिय शिष्य कहोड़ के साथ अपनी पुत्री सुजाता का विवाह कर दिया था. एक बार जब सुजाता गर्भवती थी और कहोड़ वेद पाठ कर रहे थे. वह बार-बार उच्चारण में चूक कर रहे थे.
तभी सुजाता के गर्भ से आवाज़ आई- “आपका उच्चारण अशुद्ध है”. यह सुनते ही कहोड़ कुपित हुए. उन्होंने पूछा कि कौन है जो मेरे उच्चारण को चुनौती दे रहा है, मेरे समक्ष प्रकट हो.
फिर से आवाज आई- पिताजी में आपका अंश हूं जो माता के गर्भ में स्थित हूं. आप जैसे ज्ञानी के मुख से अशुद्ध उच्चारण सुनकर मैंने टोका.
कुपित होकर कहोड़ ने शाप दिया- तू जन्म से पूर्व ही मीनमेख निकालने लगा है. तेरे आठ अंग टेढ़े हो जाएंगे. कहोड़ शास्त्रार्थ से धन प्राप्ति की इच्छा के साथ राजा जनक के दरबार में पहुंचे.
जनक के राजपुरोहित बन्दी विद्वानों को शास्त्रार्थ की चुनौती देते और हारने वाले को जल में डुबोकर मार डालते. बंदी ने कुतर्कों से कहोड़ को पराजित कर दिया और पानी में ड़ुबाकर मार डाला.
शाप के प्रभाव से कहोड़ को आठ स्थानों से टेढ़े अंगों वाला पुत्र जन्मा. इसलिए उसका ‘अष्टावक्र’ नाम पड़ा. कहोड़ की मृत्यु के बाद पुत्री सुजाता अपने बेटे अष्टावक्र को लेकर पिता के आश्रम में आ गई.
अष्टावक्र के हाथ-पैर टेढ़े-मेढ़े थे, कद नाटा था, पीठ पर कूबड़ निकला था, चेहरा भद्दा था पर मां सुजाता का वही एक आसरा था. अष्टावक्र शरीर से भले बेढंगे थे, पर बुद्धि बड़ी तीव्र थी.
अपनी तीव्र बुद्धि के कारण उसने थोड़ी ही उम्र में वेद-शास्त्रों तथा धर्म-ग्रन्थों का अच्छा अध्ययन कर लिया. एक दिन अष्टावक्र अपने नाना की गोद में बैठा था तभी उद्दालक का पुत्र श्वेतकेतु आया.