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विद्वानों के बीच शास्त्रार्थ के निर्णायक को भी प्रतिस्पर्धियों जैसा ज्ञान तो होना ही चाहिए. शंकराचार्य ने इसके लिए मंडन मिश्र की पत्नी भारती देवी का नाम सुझाया.
मंडन मिश्र और शंकराचार्य के बीच शास्त्रार्थ सोलह दिन तक लगातार चला. भारती देवी को कुछ आवश्यक कार्य के लिए बाहर जाना था लेकिन हार-जीत का निर्णय अभी हुआ नहीं था.
बड़ी दुविधा थी. भारती देवी ने इसका रास्ता निकाला. जाने से पहले उन्होंने दोनोँ विद्वानोँ के गले मेँ एक-एक फूलमाला डालते हुए कहा, येँ मालाएं मेरी अनुपस्थिति मेँ आपके हार और जीत का फैसला करेँगी.
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Shankaracharya ji ne fir 6 mahine kya kiya?