माधव ने माँ लक्ष्मी को अपने झोपड़े में शरण देदी, और माँ लक्ष्मी तीन साल तक उस माधव के घर पर नौकरानी बन कर रही।
जिस दिन माँ लक्ष्मी माधव के घर आई थी उस के दूसरे दिन से ही माधव को इतनी आमदनी हुयी फूलों से कि शाम को ही उसने एक गाय खरीद ली,फिर धीरे – धीरे माधव ने काफी जमीन खरीद ली, और सब ने अच्छे – अच्छे कपड़े भी बनवा लिये, और फिर एक बड़ा पक्का घर भी बनवा लिया, बेटियों और बीबी ने गहने भी बनवा लिये, और अब मकान भी बहुत बड़ा बनवा लिया था।
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माधव हमेशा सोचता था कि मुझे यह सब इस महिला के आने के बाद मिला है, इस बेटी के रुप में मेरी किस्मत आ गई है, और अब 2-3 साल बीत गये थे, लेकिन माँ लक्ष्मी अब भी घर में और खेत में काम करती थी। एक दिन माधव जब अपने खेतों से काम खत्म करके घर आया तो उसने अपने घर के सामने द्वार पर एक देवी स्वरुप गहनों से लदी एक औरत को देखा। ध्यान से देख कर पहचान गया अरे यह तो मेरी मुँह बोली चौथी बेटी यानि वही औरत है, और पहचान गया कि यह तो माँ लक्ष्मी है।
अब तक माधव का पूरा परिवार बाहर आ गया था, और सब हैरान हो कर माँ लक्ष्मी को देख रहे थे। माधव बोला हे माँ! हमें माफ़ कर दो ,हम ने तेरे से अंजाने में ही घर और खेत में काम करवाया, हे मां! यह कैसा अपराध हो गया, हे माँ! हम सब को माफ़ कर दो।
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