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जया एकादशी व्रत की विधि इस प्रकार है-
जया एकादशी व्रत का नियम पालन दशमी तिथि की रात से ही शुरु करें व पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करें.
दशमी की रात्रि को तामसी भोजन जैसे प्याज-लहसुन, मसूर की दाल, बैंगन आदि ग्रहण न करें. सात्विक भोजन लें.
एकादशी के दिन सुबह नित्यकर्मों से निवृत्त होकर घर की साफ-सफाई के बाद साफ वस्त्र पहनकर भगवान विष्णु की प्रतिमा या फोटो(श्रीकृष्ण की भी मूर्ति हो तो चलेगी) के सामने बैठकर व्रत का संकल्प लें.
संकल्प लेने की पूर्ण विधि प्रभु शरणम् एप्प के मंत्र-चालीसा सेक्शन के दैनिक पूजन विधि में है. सामान्य रूप से संकल्प लेने के लिए हाथ में जल, पुष्प रखकर अपना नाम, अपने पिता या पति का नाम, गोत्र, स्थान, तिथि का स्मरण करते हुए व्रत-पूजन का संकल्प ले सकते हैं.
वैसे विधि-विधान से संकल्प लेना श्रेयष्कर है. विधि है भी बहुत सरल, एक मिनट ही लगते हैं.(देखें एप्पस के मंत्र-चालीसा सेक्शन में दैनिक पूजन विधि)
इस दिन यथासंभव उपवास करें. बीमारों, स्तनपान कराने वाली स्त्रियों और वृद्धों के लिए नियम कड़े नहीं हैं. वे आवश्यकतानुसार फलाहार, दवाई आदि ग्रहण कर सकते हैं.
स्वस्थ लोग उपवास में अन्न ग्रहण नहीं करें. एक समय फलाहारी कर सकते हैं.
दिन में भगवान विष्णु की पूजा विधि-विधान से करें. यदि पूजन में असमर्थ हों तो किसी योग्य ब्राह्मण से भी करवा सकते हैं अथवा एप्पस की सहायता लें, पूजन सरल ही है. आपको यह विधि वैसे भी पता होनी चाहिए. (देखें प्रभु शरणम् ऐप्पस)
भगवान विष्णु को पंचामृत से स्नान कराएं.
स्नान के बाद चरणामृत को व्रती अपने ऊपर और परिवार सदस्यों पर छिड़कें और उस चरणामृत को पीएं.
भगवान को गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि यथासंभव पूजन सामग्री से पूजन करें. इन्हें अर्पित करने के मंत्र बहुत ही सरल हैं. एप्पस के दैनिक पूजा विधि सेक्शन में देखें.
विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें. विष्णु सहस्त्रनाम पुस्तक हो तो उसका पूजन कर लें. यदि उपलब्ध नहीं है पुस्तक तो प्रभु शरणम् ऐप्पस में है सहस्त्रनाम.
इसके बाद व्रत की कथा सुनें.
एकादशी की रात्रिकाल में बिस्तर पर सोने से बचें. भूमि पर सोएं और संभव हो तो भगवान विष्णु की मूर्ति के समीप हो सोएं.
द्वादशी के दिन ब्राह्मण को भोजन कराकर, यदि भोजन कराना संभव नहीं हो पाता तो उनके अंश से एक राशि मन में सोच लें और भोजनार्थ कहकर दान कर दें. तत्काल दान नहीं कर पा रहे तो वह धन निकालकर अलग रख लें और जब संभव हो दान कर दें.
इसके बाद आप स्वयं भोजन ग्रहण करें. सात्विक भोजन लें. प्याज-लहसुन से द्वादशी पारण में बचना चाहिए.
एकादशी व्रत की कथा को किसी को अवश्य सुनाना चाहिए. घर-परिवार में कोई बूढ़ा-बुजुर्ग हो जो कथा पढ़ने-सुनने में समर्थवान न हो तो उसे यह व्रत कथा अवश्य सुनानी चाहिए. जो भी व्यक्ति प्रत्येक एकादशी की कथा लोगों को सुनाता है उसे अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है.
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