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जनक सोचने लगे-यदि ये नरकवासी मेरी उपस्थिति से अपने भीषण कष्टों में कुछ आराम का अनुभव करते हैं तो मैं इसी कालपुरी में रहूंगा. जहां मेरी उपस्थिति से किसी का कल्याण हो वही स्थान मेरे लिए स्वर्गतुल्य है.
वह वहीं रूक गए. काल को सूचना हुई और वह राजा जनक के पास आए. उन्होंने समझया कि आपका स्थान नरकलोक में नहीं अपितु विलास से पूर्ण स्वर्गलोक में है. आप यहां से प्रस्थान करें.
जनक ने अपने ठहरने का कारण बताते हुए कहा कि वह वहां से तभी प्रस्थान करेंगे जब काल उन सबको दंडमुक्त कर देंगे. दुविधा में पड़े काल ने प्रत्येक पापी और उसके घृणित कर्मों के विषय में बताकर कहा कि ये दंड के भागी हैं.
जनक ने कहा- जीवों को उसके कर्मों की सजा मिलनी ही चाहिए लेकिन इन्होंने मुझसे याचना की है. यदि असहाय की बात ठुकरा देता हूं तो मैं स्वयं पाप का भागी बनूंगा. अतः उनकी प्रताड़ना से मुक्ति की युक्ति बताइए.
काल ने कहा- यदि आपके कुछ पुण्य इन्हें दे दें तो इनकी मुक्ति हो सकती है किंतु इसमें एक खतरा है. यदि इनके शेष पाप आपके पुण्यों से अधिक निकले तो पुण्यों के अभाव में आप स्वयं स्वर्ग से वंचित हो जाएंगे.
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