हम ईश्वर की लीला को समझने में भूल करते हैं फिर सोचते हैं कि ईश्वर है ही नहीं. सब कपोल कल्पनाएं हैं. ईश्वर की लीला पर संदेह है तो इसे अंत तक पढ़ें, समझें. शायद संदेह बाकी न रहे.
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ईश्वर की कृपा एक शक्ति की तरह होती है. हर कोई उसे संभाल नहीं सकता जैसे दौलत और ताकत को सभी नहीं संभाल पाते. इसलिए भगवान को जिस पर कृपा करनी होती है, पहले उसे ठोक-बजाकर तैयार करते हैं. इसके बाद होती है उनकी कृपा. यही है- ईश्वर की लीला.
तो यदि सब कुछ अच्छा करने के बाद भी जब हमारे काम बिगड़ते जा रहे हों तब भी भरोसा मत छोड़िए. बल्कि यह समझिए कि शायद ईश्वर ने हमारे लिए कुछ बेहतर सोचा है. अच्छे कर्म कभी भी बेकार नहीं जाते, उनका फल मिलता ही है. अच्छे कर्मों करते हैं तो धैर्य भी रखिए. तत्काल फल की आशा में बेचैन न हों.
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ईश्वर चाहते हैं कि इसे आप उनके खजाने में कुछ दिन जमा रखें ताकि उसपर कुछ ब्याज बढ़ जाए और आपको ब्याज सहित लौटाएं. यह है ईश्वर की लीला. इस विषय पर बात करेंगे उससे पहले एक कथा सुनाना हूं. इससे बात समझने में सरलता हो जाएगी. धैर्य के साथ अंत तक पढ़िएगा.
यह एक बहुत पुरानी बात है. किसी नगर के समीप एक जंगल में तीन वृक्ष थे. वे तीनों अपने सुख-दुःख और सपनों के बारे में एक दूसरे से बातें किया करते थे.
एक दिन तीनों अपने सपने के बारे में चर्चा करने लगे.
पहले वृक्ष ने कहा- मैं खजाना रखने वाला बड़ा संदूक बनना चाहता हूं. मेरे भीतर हीरे-जवाहरात और दुनिया की सबसे कीमती निधियां भरी जाएं. मुझे बड़े कलात्मक तरीके से सजाया जाए. नक्काशीदार बेल-बूटे बनाए जाएं, दुनिया मेरी खूबसूरती को निहारे, ऐसा मेरा सपना है.
दूसरे वृक्ष ने कहा- मैं तो एक विशाल जलयान बनना चाहता हूं. बड़े-बड़े राजा मुझपर सवार होकर दूर देश की यात्राएं करें. मैं अथाह समंदर में हिलोरें लूं, मेरे भीतर सभी सुरक्षित महसूस करें और मेरी शक्ति पर सबको भरोसा हो, मैं यही चाहता हूं.
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