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उनको प्रणाम करके कहा- यह भेंट स्वीकार करें और मुझे अपने आराध्य देव के बारे में बताए. रैक्व ने तिरस्कारपूर्वक राजा से कहा- अरे मूर्ख मुझे इन सबका क्या काम! तू ही इन्हें अपने पास रख और यहां से भाग. मेरी शांति भंग मत कर.

राजा वापस चल दिया और रैक्व को प्रसन्न करने के तरीके सोचने लगा. उसे तो रैक्व का ब्रह्मज्ञान हर हाल में चाहिए था ताकि सबके पुण्य उसे प्राप्त हों. उसने अपनी सबसे प्रिय वस्तु रैक्व को के चरणों में अर्पित करके प्रसन्न करने की सोची.

राजा को सबसे अधिक स्नेह अपनी युवा पुत्री से था. इस बार राजा एक हज़ार गाएं, सामग्री से भरा रथ, सुवर्ण के आभूषण तथा अपनी कन्या को लेकर महाज्ञानी रैक्व के पास पहुंच गया.

उसने रैक्व को सभी वस्तुओं समेत अपनी कन्या देकर कहा कि आप इससे विवाह कर रिशृतेदार हों और मुझे ब्रह्मज्ञान प्रदान करें. महात्मा रैक्व समझ गए कि राजा की जिज्ञासा सत्ची है लेकिन सांसारिक वस्तुओं के प्रति राजा के प्रेम से वह दुखी थे.

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