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दूसरे हंस ने उत्तर दिया- इसी राज्य में ब्रह्मज्ञानी रैक्व रहता है. उसके सामने राजा के सभी परोपकार के कार्य तुच्छ हैं. उसने परब्रह्म को जान लिया है. इस राज्य के राजा और प्रजा जो पुण्य कार्य करते हैं, उन सबका फल रैक्व को ही प्राप्त होता है.
पहला हंस बोला- ऐसा क्या ज्ञान है जो राजा भी नहीं जानता. वह तो समझता है कि उससे बढ़कर कोई दानी ज्ञानी है ही नहीं. दूसरे हंस ने उत्तर दिया- जिस तत्व को ज्ञानी रैक्व जानते हैं, यदि उसे कोई अन्य भी जान ले तो उसे भी उन्हीं की भांति दूसरों के पुण्य फल प्राप्त होंगे.
राजा ने हंसों की बात सुनी तो रैक्व के विषय में जानने के लिए व्यग्र हो उठा. प्रातः मन्त्रियों को रैक्व नाम के महात्मा ढूंढने का आदेश दिया. राजा के सिपाही खोजने निकले.
रैक्व बैलगाड़ी चलाकर आजीविका जुटाते थे. सिपाही जब पहुंचे तो रैक्व एकान्त में बैठे अपना शरीर खुजा रहे थे. राजा को पता चला तो सैकड़ों गायों, सुवर्ण तथा अन्य सामाग्रियों से भरा एक रथ को लेकर रैक्व के पास पहुंचा.
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