क्या द्रौपदी के पति पांच पांडव अलग-अलग देवताओं के अंश थे या एक ही देवता के अंश.  देवराज इंद्र के पांच अंश पांडवों के रूप में आए थे? इंद्र को पांच रूप क्यों धरना पड़ा? इंद्र का अंश पांच रूपों में कैसे खंडित हुआ. पांच पांडवों की अनसुनी कथा.

पांच पांडवों की पत्नी बनीं थीं द्रौपदी. युधिष्ठिर को धर्मराज या यमराज का अंश कहा गया. भीम को पवनदेव, अर्जुन को इंद्र, नकुल और सहदेव को अश्विनीकुमारों का अंश कहा गया है. यही प्रचलित कथा है. पर इस कथा के पीछे भी एक कथा है. जिस तेज से पांडवों का जन्म हुआ वह तेज इंद्र का ही था. एक आपदा आने के कारण इंद्र का क्षय हो रहा था. इंद्र देवराज हैं और देवराज का अर्थात देवताओं का क्षय. इंद्र के क्षय को रोकने के लिए उनके अंश को विभक्त किया गया जो एक बड़े प्रयोजन में बाद में काम आया.

बड़ी सुंदर कथा है. इसे ज्यादा लोग जानते नहीं. द्रौपदी इंद्र की पत्नी इंद्राणी का अवतार थीं. उन्हें क्यों पांच पुरुषों से विवाह करना पड़ा? इंद्र का तेज क्यों क्षय होने लगा? उस तेज को कैसे सुरक्षित रखा गया? इसकी कथा आपको विस्तार से सुनाता हूं. यह कथा जैमिनीय अश्वमेध पर्व में आती है. जैमिनी जो वेद-व्यास के शिष्य थे उन्हें व्यासजी ने जो कथाएं बताईं उसका उन्होंने और विस्तृत शोध किया और फिर जैमिनीय अश्वमेध पर्व लिखा.

इंद्र के अंश से पांडवों की उत्पत्ति की कथा विस्तृत है. एक कथा में कई कथाएं मिली हुई हैं. इसलिए यदि धैर्य से पढ़ सकेंगे तो ही समझ आएगा अन्यथा बात अधूरी रह जाएगी. हमारे धर्मशास्त्रों की कथाओं के पीछे कारण भी बताए गए हैं. धर्मनिष्ठों को उनसे परिचित होना चाहिए.

इंद्र के अंश पाडवों को हमेशा मिला नारायण का वरदान

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जैमिनी ऋषि धर्मतत्वों के जिज्ञासु थे. एक बार उन्होंने मार्कंडेय ऋषि से निवेदन किया- मुनिवर मैंने महर्षि व्यासजी से समस्त पुराणों,  महाभारत, और धर्मशास्त्रों का श्रवण किया. बाद में चिंतन करने लगा तो मेरे मन में कुछ शंकाएं आईं हैं. मेरी शंकाओं का निवारण करके मुझे धन्य करिए.

मार्केंडेय का संकेत मिलने पर जैमिनी ने उनसे पांच प्रश्न किए- जगत के कर्ताधर्ता भगवान ने मनुष्य रूप में जन्म क्यों लिया? राजा द्रुपद की पुत्री द्रौपदी पांच पतियों की पत्नी क्यों बनी? श्रीकृष्ण के भ्राता बलराम ने किस कारण तीर्थयात्राएं कीं? द्रौपदी के पांच पुत्र जो उप पांडव थे उनकी ऐसी निर्मम मृत्यु क्यों हुई?

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मार्कंडेय ने कहा- मुनिवर मैं तपस्या के लिए संकल्पित हूं जिसका समय हो चला है. आपने जो प्रश्न किए हैं उसका उत्तर बहुत विस्तृत है. विस्तार से यह वृत्तांत सुनाने का समय मेरे पास अब शेष नहीं है.  आपकी इन समस्याओं का निवारण विंध्याचल में निवास कर रहे चार श्रेष्ठ पक्षी- पिंगाक्ष, निवोध, सुपुत्र और सुमुख करेंगे. वास्तव में वे पक्षी भी आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं.

जैमिनी को यह जानकर बड़ा विस्मय हुआ. पक्षी मेरी प्रतीक्षा कर रहे हैं.

मार्कंण्डेय ने कौतुहल भांपते हुए कहा- मुनिवर वे ये चारों साधारण पक्षी नहीं ऋषिपुत्र हैं जो वेद और शास्त्रों में पारंगत हैं. उनसे अपनी शंकाओं का निवारण करें.

जैमिनी ने प्रश्न किया- ऋषिवर पक्षी ऋषिपुत्र कैसे हो सकते हैं? मानवों की भाषा का ज्ञान पक्षियों को कैसे हो सकता है? मेरे मन से पुराने प्रश्नों के स्थान पर अब ये नए प्रश्न आ गए हैं जो मुझे ज्यादा व्यथित कर रहे हैं.

महर्षि मार्कंडेय ने जैमिनी को एक छोटी सी कथा सुनाई.

एक बार देवर्षि नारद घूमते-घूमते इंद्र के लोक अमरावती जा पहुंचे. इंद्र ने नारदजी का समुचित स्वागत-सत्कार किया. उन्हें उचित आसन दिया फिर अपना एक प्रश्न करने की अनुमति ली.

इंद्र ने पूछा- मुनिवर, यह इंद्रलोक है. यहां पर नृत्य-संगीत के श्रेष्ठ ज्ञानी उपस्थित हैं. देवसभा में रंभा, ऊर्वशी, तिलोत्तमा, मेनका, धृताचि, डिश्रकेशी आदि अप्सरा रूपी नृत्यरत्न उपस्थित हैं. ये सभी मुझे प्रिय हैं परंतु इनके एक प्रश्न में मैं सदा उलझ जाता हूं. इस प्रश्न का उत्तर आपके जैसा संन्यासी ही दे सकता है जो समस्त लोकों में विचरण करता हो. देवर्षि आपके विचार से इन अप्सराओ में श्रेष्ठ कौन है?

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