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घर से निकलते ही अंधेरे में ठोकर लगी और गठरी हाथ से छूटकर बह गई. नारद ने सोचा चलो कोई बात नहीं धन ही गया है फिर से कमा लेंगे.
आगे बढ़े. कुछ दूरी पर पत्नी का पैर गडढ़े में पड़ा. बगल से बच्चा छूटकर पानी में गिरा और बह गया. पत्नी बिलखने लगी पर क्या हो सकता था.
इसी तरह एक-एक करके दो और बच्चे हाथ से छूटे और बाढ़ में बह गए. अब पति-पत्नी भर रह गए. दोनों जान बचाकर भाग रहे थे कि अचानक पानी के भंवर में फंस गए.
नारदजी तो किसी तरह निकल आए लेकिन पत्नी भंवर में फंसकर डूब गईं. नारदजी पत्नी और बच्चों को गंवाकर बिलख-बिलखकर रोने लगे. जमी-जमाई गृहस्थी एक दिन में समाप्त हो गई थी.
वह अपने भाग्य को कोस रहे थे और पुरानी बातें याद करने लगे. उन्हें ध्यान आया कि कैसे वह श्रीहरि को प्यासा छोड़कर आए थे और मोह-माया में जकड़ गए.
नारद को पछतावा हुआ कि उन्होंने यह क्या कर डाला. अपने प्रभु को प्यासा छोड़कर सांसारिकता में फंस गए और क्या-क्या दिन देखने पड़ गए.
यह ख्याल आते ही वह दहाड़ें मारकर रोने लगे. तभी वह गांव लुप्त हो गया. कहीं कोई बाढ़ नहीं थी. प्रभु तो उसी पेड़ के नीचे बैठे हैं जहां नारद छोडकर गए थे.
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