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वह फल तोड़ने के लिए आकाश में उड़े. देवता, दानव, यक्ष सभी हनुमानजी को सूर्य की ओर बढ़ता देख आश्चर्य में थे. पवनदेव की भी नजर पड़ी.
वह भी अपने पुत्र के पीछे-पीछे भागे. सूर्यदेव के प्रचंड ताप से हनुमान कहीं जल न जाएं इस आशंका में पवनदेव उनपर हिमालय की शीतल वायु छोड़ते रहे.
सूर्यदेव ने देखा कि स्वयं भगवान शिव वानर बालक के रूप में आ रहे हैं तो उन्होंने भी अपनी किरणें शीतल कर दीं. बाल हनुमान सूर्य के रथ पर पहुंच गए और उनके साथ खेलने लगे.
सूर्यदेव भी इससे अभिभूत थे. उस दिन ग्रहण लगना था. समुद्र मंथन के दौरान छल से अमृत पीकर अमर हुए दानव राहु को इंद्रदेव ने महीने में एक बार अमावस्या को सूर्य को ग्रसने का अधिकार दिया था.
उस दिन राहु को सूर्य को ग्रसना था. राहु सूर्य को ग्रसने के लिये आया. राहु ने देखा कि सूर्यदेव के रथ पर एक वानर बालक सवार है. वह हनुमानजी को देखकर आश्चर्य में पड़ा.
राहु ने जैसे ही सूर्य को ग्रसने की कोशिश की, हनुमानजी ने राहु को पकड़ लिया और एक मुक्का जड़ दिया. रोता-चिल्लाता राहु इंद्र के पास भागा इंद्र से पूछा कि क्या आपने सूर्य को ग्रसने का अधिकार किसी और को दे दिया है?
इंद्र ने इंकार किया तो राहु ने सारी बात कह सुनाई. इस बार राहु को सूर्य को ग्रसने में मदद करने के इंद्र भी साथ चले. दोबारा राहु को देखकर हनुमान राहु पर टूट पड़े और उसकी दुर्गति कर दी. राहु ने डरकर इंद्र को रक्षा के लिए पुकारा.
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