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वह बेचैन हो गईं. उसी समय पवनदेव ने शिवजी के दिव्य पुंज को कान के रास्ते अंजना के गर्भ में स्थापित कर दिया. व्याकुल अंजना को सांत्वना देते हुए पवनदेव ने आकाशवाणी की.

पवनदेव ने कहा, ‘देवी! मैंने बिना आपका पतिव्रत भंग किए आपके गर्भ में एक ऐसा विलक्षण तेज स्थापित कर दिया है जो पुत्र रूप में जन्म लेने के बाद अतुलित बलशाली और विलक्षण बुद्धि वाला होगा. मैं उसकी रक्षा करूंगा और वह श्रीराम का परमभक्त होगा’

शिवजी द्वारा दायित्व पूरा करने के बाद पवनदेव कैलाश पहुंचे. शिवजी ने प्रसन्न होकर उनसे वर मांगने को कहा. पवनदेव ने स्वयं को अंजना के पुत्र का पिता कहलाने का सौभाग्य मांगा. हनुमानजी को शंकर सुवन केसरीनंदन, अंजनीपुत्र और पवनसुत कहलाते हैं.

चैत्र शुक्ल पूर्णिमा मंगलवार को रामनवमी के तुरंत बाद अंजना के गर्भ से भगवान शिव वानर रूप में अवतरित हुए. शिवजी का अंश होने के कारण अति तेजस्वी होना स्वाभाविक था. पवनदेव ने हनुमानजी को उड़ने की शक्ति प्रदान की थी.

एक दिन अंजना हनुमानजी को अकेला छोड़कर कहीं गईं थीं. हनुमानजी को बड़ी भूख लगी. उन्होंने इधर-उधर खाने की चीज तलाशी लेकिन कुछ नहीं मिला.

अंत में उनकी दृष्टि सूर्य पर पड़ी. प्रातःकाल का समय था. सूर्य की लालिमा देखकर हनुमानजी को लगा कि आसमान में कोई स्वादिष्ट फल लटक रहा है.

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