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मृत्यु ने कहा- लोभ, क्रोध, अश्या, ईर्ष्या, द्वेष, मोह, निर्लज्जता और दूसरे के प्रति कठोर वाणी प्राण हरने के लिए आवश्यक दोष होने चाहिएं तभी मैं संहार का दायित्व ले सकती हूं.
ब्रह्माजी प्रसन्न होकर बोले- तुम उत्तम रीतियों से प्राणियों का संहार करो. तुम्हारे आंखों से बहे सारे आंसू मैंने संभाल रखे थे. वे सभी विभिन्न प्रकार की व्याधियां बनेंगे.
तुमने जो दोष कहे, उनके अलावा उन व्याधियों से ग्रस्त होकर आयुविहीन हुए प्राणियों का भी संहार करो. तुम प्राणियों के धर्म का स्वामिनी होगी इसलिए काम और क्रोध का त्याग करके धर्मपूर्वक संहार करो.
ब्रह्माजी की आज्ञा से मृत्यु अंतकाल आने पर बिना किसी राग-द्वेष के संहार करती है. ब्रह्माजी के वरदान के अनुसार प्राणी दोषों से युक्त होकर स्वयं अपने को मारते हैं और जीवनकाल कम करते हैं.
व्याधियां मृत्यु के संहार कार्य का आधार तैयार करती हैं. प्राणी अपने अंत की ओर स्वयं अग्रसर होते हैं, मृत्यु बलपूर्वक किसी के प्राण नहीं हरती.
(महाभारत की कथा)
संकलन व संपादनः राजन प्रकाश
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