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ब्रह्माजी मृत्यु को समझाने लगे- प्रजा के संहार के संकल्प के साथ ही मैंने तुम्हारी रचना की है इसलिए तुम्हारे मन में ऐसे विचार आने ही नहीं चाहिए. तुम लोक में निंदा की पात्र नहीं बनोगी. मेरी आज्ञा से तुम प्रजा का संहार करो.
मृत्यु ने ब्रह्माजी को कोई वचन नहीं दिया और वहां से धेनुकाश्रम आ गई. धेनुकाश्रम में मृत्यु ने एक पैर पर खड़े होकर घोर तप आरंभ किया. तप के कारण ब्रह्माजी प्रकट हुए.
उन्होंने पूछा- मृत्यु किस लालसा में तुम यह घोर तप कर रही हो. मृत्यु ने फिर वही बात कही- मुझे अधर्म से डर लगता है इसलिए तप कर रही हूं. प्रभु मेरी प्रार्थना है कि मुझे रोते-बिलखते स्वस्थ प्रजा का संहार न करना पड़े.
ब्रह्माजी बोले- तुम चार श्रेणियों- उद्भिज, स्वेदज, अण्ड और पिण्डज में विभाजित प्राणियों का संहार करने में समर्थवान बनो. सनातन के प्रभाव से तुम पापमुक्त रहोगी.
इस कार्य में सभी लोकपाल, यम और व्याधियां तुम्हारी सहायता करेंगे. मैं और सभी देवता तुम्हें वरदान देकर शक्तिसंपन्न करेंगे जिससे तुम पापमुक्त रहकर निर्मल बनी रहोगी.
मृत्यु की पीड़ा कम नहीं हुई थी. उसने कहा- यदि यह संहार मेरे बिना पूर्ण नहीं हो सकता तो मैं अपने रचयिता की बात को नहीं टालूंगी लेकिन दोषमुक्त प्राणियों का संहार नहीं करूंगी.
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