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रूद्र के समझाने पर ब्रह्मा ने उस क्रोध को धारण कर लिया और सृष्टि मुद्रा में गए. तब उनके शरीर से काले और लाल रंग की एक नारी उत्पन्न हुई. उसकी जीभ, मुख और नेत्र लाल थे. वह नारी ब्रह्माजी के सामने उपस्थित हुई.

ब्रह्माजी ने उसे आदेश दिया- तुम मेरी संहार बुद्धि और क्रोध से प्रकट हुई हो इसलिए तुम संसार में प्राणियों का संहार करो. तुम्हारा नाम मैं मृत्यु रखता हूं. तुम ज्ञानी और अज्ञानी सबका संहार कर सकती हो.

यह सुनते ही मृत्यु फूटफूटकर रोने लगी. ब्रह्माजी ने उसके सभी आंसुओं को समस्ता प्राणियों के हितों के लिए अंजुलि में रखकर सहेज लिया और मृत्यु को हर प्रकार से सांत्वना देने लगे.

मृत्यु ने पूछा-आपने मुझे नारी रूप में क्यों उत्पन्न किया? प्रभु मैं पाप से डरती हूं. जब मैं लोगों के प्रिय परिजनों को मारने लगूंगी तो वे मुझे शाप देंगे. मेरे प्रति घृणा रखेंगे. इससे मेरा मन व्याकुल है.

प्रभु मुझे यमराज के कार्य में सहयोगी न बनाइए. मैं तप करना चाहता हूं. रोते-बिलखते प्राणियों के शरीर से प्राण का हरण मेरे वश का नहीं है. मुझे क्षमा करें, मैं अधर्म का माध्यम नहीं बन सकती.

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