हमारा फेसबुक पेज लाईक करें.[sc:mbo]
उनके समक्ष कोई स्वामी पर प्रहार कर गया और स्वामी ने प्रतिकार भी न किया, यह बात मन में कौंधती रही. यह स्थान वास के योग्य नहीं, पर त्याग कैसे करें, श्रीहरि से ओझल होकर रहना कैसे होगा! वह उचित समय की प्रतीक्षा करने लगीं.

श्रीहरि ने हिरण्याक्ष के कोप से मुक्ति दिलाने के लिए वराह अवतार लिया और दुष्टों का संहार करने लगे. महालक्ष्मी के लिए यह समय उचित लगा. उन्होंने बैकुंठ का त्याग कर दिया और पृथ्वी पर एक वन में तपस्या करने लगीं.
शेष कथा कुछ ही देर में पढें.

हम ऐसी कथाएँ देते रहते हैं. फेसबुक पेज लाइक करने से ये कहानियां आप तक हमेशा पहुंचती रहेंगी और आपका आशीर्वाद भी हमें प्राप्त होगा.https://www.facebook.com/MehandipurBalajiOfficial

धार्मिक चर्चा में भाग लेने के लिए हमारा फेसबुक ग्रुप ज्वाइन करें.https://www.facebook.com/groups/prabhusharnam

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here