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भोज में गणेशजी तब पहुंचे जब सारे देवता भोजन कर चुके थे. कुबेर ने गणेशजी को चिढ़ा दिया- गणेशजी मुझे तो लगता था कि आप आएंगे नहीं और मेरा भोजन बर्बाद हो जाएगा. आपके लिए तो अलग से प्रबंध करना पड़ता है.

गणेशजी ने आसन लगाया और बोले- भोजन लाओ. आज मैं भरपेट भोजन करुंगा. गणेशजी ने खाना शुरू किया और थोड़ी देर में कुबेर की रसोई खाली हो गई. नौकरों ने झटपट और भोजन पकाया.

लंबोदर के सामने कुबेर के नौकर भोजन से भरी थाली रखकर खड़े भी नहीं हो पाते और गणेशजी आंख मूंदकर गटक जाते और नई फरमाइश कर देते.

उनकी थाली खाली होने लगी. गणेशजी ने कहा- कुबेर आपके स्वादिष्ट पकवानों ने मेरी भूख जगा दी. मैं ठहर नहीं सकता. अगर भोजन नहीं मिला तो मैं आपको ही खा जाउंगा.

कुबेर के पसीने छूट गए, प्राण खतरे में नजर आने लगे. मृत्यु को सामने देख वह ब्रह्माजी के शरण में भागे.

ब्रह्माजी ने कहा- कुबेर आपके अभिमान से यह सब हुआ है. अब शिवजी के अलावा कोई दूसरा नहीं बचा सकता आपको.

कुबेर कैलाश भागे और शिवजी के चरणों में लोट गए. अपने अपराध के लिए क्षमा मांगी और काल रूपी गणेशजी से रक्षा की प्रार्थना की. महादेव ने कहा- गणेशजी को पान से भरी थाली परोस दो.

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