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देवताओं ने निवेदन किया- प्रभो! मदासुर के शासन में देवगण स्थानभ्रष्ट और मुनिगण कर्मभ्रष्ट हो गए हैं. आप हमें इस कष्ट से मुक्ति दिलाकर अपनी भक्ति प्रदान करे.
उधर देवर्षि नारद ने ने मदासुर को सूचना दी कि भगवान एकदन्त ने देवताओं को वरदान दिया है. अब वे तुम्हारा प्राण- हरण करने के लिए तुमसे युद्ध को शीघ्र आएंगे.
मदासुर अपनी विशाल सेना लेकर स्वयं भगवान एकदन्त से युद्ध करने के लिए चला. भगवान एकदन्त रास्ते में ही प्रकट हो गये. राक्षसों ने देखा कि भगवान एकदन्त सामने से चले आ रहे हैं.
वह मूषक पर सवार हैं. उनकी आकृति अत्यन्त भयानक है. उनके हाथों मैं परशु, पाश आदि आयुध हैं. उन्होंने असुरों से कहा की तुम अपने स्वामी से कह दो यदि वह जीवित रहना चाहता है तो देवताओं से द्वेष छोड़ दे.
उनका राज्य उन्हें वापस कर दे. अगर वह ऐसा नहीं करता है तो मैं निश्चित ही उसका वध करूंगा. महाक्रूर मदासुर युद्ध के लिए तैयार हो गया. जैसे ही उसने धनुष पर बाण चढ़ाना चाहा कि भगवान एकदन्त का तीव्र परशु उसे लगा.
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