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च्यवन ऋषि ने मद नामक एक असुर को पैदा किया. मद बहुत बलवान और पराक्रमी दैत्य था. च्यवन तो ऋषि थे. उन्होंने मद को अपने भाई और दैत्यों के गुरू शुक्राचार्य के पास भेज दिया.
मद दैत्यगुरु शुक्राचार्य के पास गया और समस्त ब्रह्माण्ड का स्वामी बनने की इच्छा प्रकट की. शुक्राचार्य ने कहा कि ऐसा संभव है यदि मद घोर तप करके अतुलित शक्तियां प्राप्त कर ले.
शुक्राचार्य ने मदासुर को अपना शिष्य बना लिया और शक्ति के एकाक्षरी मंत्र ह्रीं की विधिपूर्वक दीक्षा दी और तप का तरीका बताया. मदासुर अपने गुरु से दीक्षा लेकर वन में चला गया और काफी वर्षों तक कठोर तपस्या करता रहा.
उसके शरीर में चींटियों ने अपने घर बना लिए. दीमक ने अपनी बांबियां बना लीं. उसके शरीर पर ही छोटे-छोटे पौधे उग आये. इतना लंबा तप था कि उसने जिस स्थान पर ध्यान लगाया था उसके चारों और बड़े-बड़े वृक्ष उग आए.
ऐसी तपस्या से माँ शक्ति प्रसन्न हुईं और मदासुर को वरदान मांगने को कहा- मदासुर ने उनसे निरोगी काया और समस्त ब्रह्माण्ड को अपनी शक्ति से जीतने का वरदान मांग लिया.
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