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सीता ने उन्हें प्यार से पुचकारा और कहा- डरो मत. तुम बड़ी अच्छी बातें करते हो. यह बताओ ये ज्ञान तुम्हें कहां से मिला. मुझसे भयभीत होने की जरूरत नहीं.
दोनों का डर समाप्त हुआ. वे समझ गए कि यह स्वयं सीता हैं. दोनों ने बताया कि वाल्मिकी नाम के एक महर्षि हैं. वे उनके आश्रम में ही रहते हैं.
वाल्मिकी रोज राम-सीता जीवन की चर्चा करते हैं. वे वहीं यह सब सुना करते हैं और सब कंठस्थ हो गया है.
सीता ने और पूछा तो शुक ने कहा- दशरथ पुत्र राम शिव का धनुष भंग करेंगे और सीता उन्हें पति के रूप में स्वीकार करेंगी. तीनों लोकों में यह अद्भुत जोड़ी बनेगी.
सीता पूछती जातीं और शुक उसका उत्तर देते जाते. दोनों थक गए. उन्होंने सीता से कहा यह कथा बहुत विस्तृत है. कई माह लगेंगे सुनाने में. दोनों उड़ने को तैयार हुए.
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