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बूढ़ी मां ने कहा- बेटा आटा तो मेरे पास है, मुझे नहीं चाहिए. सेठ ने कहा- फिर भी रख लीजिए. बूढ़ी मां ने कहा- लेकिन क्या करूंगी रखके जब मुझे आवश्यकता ही नहीं है.
सेठ ने कहा- अच्छा, कोई बात नहीं, पूरी बोरी न सही कम से कम यह आधा किलो तो रख लीजिए. बूढ़ी मां ने कहा- बेटा, आज खाने के लिए जरूरी आधा किलो आटा पहले से ही मेरे पास है. अब और क्या करूंगी?
सेठ ने कहा- तो फिर इसे कल के लिए रख लीजिए. बूढ़ी मां ने कहा- बेटा, कल की चिंता मैं आज क्यों करूं. जैसे हमेशा प्रबंध होता है कल के लिए कल प्रबंध हो जाएगा. बूढ़ी मां ने आटा लेने से साफ मना कर दिया.
सेठ की आंख खुल चुकी थी. एक गरीब बुढ़िया जो साधनहीन है वह कल के भोजन की चिंता नहीं कर रही और मैं अथाह धन का स्वामी होकर आठवीं पीढ़ी की चिन्ता में घुल रहा हूं. मेरी चिंता का कारण अभाव नहीं तृष्णा है.
वाकई तृष्णा का कोई अन्त नहीं है. संग्रहखोरी तो एक प्रकार की पीड़ा या ऐब ही है. सच्ची सुख-शांति संतोष में ही निहित है. सात पीढ़ी के लिए धन इकठ्ठा करने के बाद सेठ आठवीं पीढ़ी की चिंता में घुल रहा था.
धन का लोभ एक अंतहीन रेस है. उसमें फंसकर इंसान कहां तक घिसट जाए और किस स्तर तक गिर जाए कहा नहीं जा सकता.
संकलनः धनराज पारीक
संपादनः प्रभु शरणम्
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