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जिसकी चवन्नी थी वह लड़का अभी दूर नहीं गया था. पंडित ने उसे पुकारा और उसकी चवन्नी लौटा दी. हरिनाथ निश्चिंत मन से घर की ओर बढ़ने लगा. उसके एक हाथ में पूजा की डोलची थी और दूसरे में वही बांस. रास्ते में उसने सोचा कि बांस काफ़ी वज़नी और मजबूत है. इसे दरवाज़े के छप्पर में लगा दूँगा. कई साल के लिए बल्ली से छुटकारा मिल जाएगा.’

लक्ष्मीजी के प्रभाव से हरिनाथ को लाभ होता देख ज्येष्ठा जल उठीं. जब उन्होंने देखा कि पंडित का घर क़रीब आ गया है तो कोई उपाय न पाकर उन्होंने हरिनाथ को मार डालने का विचार किया. ज्येष्ठा गुस्से में तमतमाती हुई बोलीं, ‘लक्ष्मी! धन−सम्पत्ति तो मैं छीन ही लेती हूँ, अब इस भक्त के प्राण भी ले लूँगी.’ ज्येष्ठा ने साँप का रूप धरा और हरिनाथ पर झपटीं. हरिनाथ सांप देखकर भागने लगा. सांप बनी ज्येष्ठा ने उसका पीछा नहीं छोड़ा.

हरिनाथ घबरा गया. उसने हाथ जोड़कर कहा, ‘नाग देवता! मैंने तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ा. क्यों मेरे पीछे पड़े हो? व्यर्थ में किसी को सताना अच्छी बात नहीं है.’ लेकिन नाग ने जवाब में जोरदार फुंफकार की. जब हरिनाथ ने देख लिया कि कोई रास्ता नहीं तो उसने वह बांस साँप को दे मारा. धरती से टकराते ही बांस के दो टुकड़े हो गए. उसके भीतर भरी हुईं मोहरें बिखर गईं.

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