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मंदिर के पास खड़ी दोनों देवियां सारी लीला देख रही थीं. ज्येष्ठा ने कहा, ‘लक्ष्मी! तुम्हारी इतनी सारी मोहरें मात्र एक चवन्नी में बिक गईं. अभी तो यह चवन्नी भी तुम्हारे भक्त के पास नहीं रूकेगी.’ एक तालाब के पास दीनू ने डोलची रख दी और कमल के फूल तोड़ने लगा. उसी बीच एक चरवाहा आया और डोलची में रखी चवन्नी लेकर भाग गया. पंडित को पता भी नहीं चला. फूल तोड़कर वह घर चलने लगा.
इतने में वही लड़का आता हुआ दिखाई दिया जिसने चवन्नी देकर उससे बांस ले लिया था. लड़का बोला, ‘पंडितजी! यह बांस बहुत भारी है. चारपाई के लिए हल्का बांस चाहिए. आप इसे वापस ले लीजिए.’ उसने बांस पंडितजी के हवाले कर दिया. बांस के बदले पंडित ने चवन्नी लौटानी चाही, लेकिन चवन्नी तो डोलची से उड़ चुकी थी.
पंडित ने कहा, ‘बेटा, चवन्नी तो कहीं गिर गई. तुम मेरे साथ घर चलो, वहाँ दूसरी दे दूँगा. इस समय मेरे पास एक भी पैसा नहीं है.’ लड़के ने पंडित से कहा कि वह शाम को आकर घर से अपनी चवन्नी ले लेगा. बांस फिर से पंडित जी के ही पास आ गया. लक्ष्मी जी धीरे से मुस्कराईं. उनको मुस्कराता देख ज्येष्ठा जल भुन गई.
वह बोलीं, ‘ इतराने की जरूरत नहीं. अभी तो खेल शुरू ही हुआ है. बस देखती चलो.’ हरिनाथ को पता ही नहीं था कि वह दो देवियों के दाव-पेंच में फंसा हुआ है. गांव के करीब उसे चरवाहा मिला. उसने चवन्नी वापस करते हुए कहा, ‘मेरा लड़का आपकी डोलची से चवन्नी ले भागा था. मैं चवन्नी लौटाने आया हूँ.’ पंडित खुश हो गया. वरना उसे बिना बात चवन्नी का दंड भरना पड़ता.
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